Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 31
________________ सती मदनरेखा घटनाक्रम दिखला कर देव बोला मदनरेखा ने कहादेवी अब तुम्हारे कष्टों के दिन दूर चले गये। देव, पति को सद्गति मिल गई। पुत्र सुखी है, तो फिर "अब तुम जहाँ मिस पुत्र के पास रहना मुझे किसकी चिंता...? मैं अब अपना कल्याण करना चाहो, बोलो, मैं तुम्हें वहीं पहुंचा दूंगा। | चाहती हूँ। इसलिए जहाँ भी कोई योग्य साध्वी समुदाय हो, वहीं मुझे पहुँचा दो। मैं अब दीक्षा लेकर संयम तप-त्याग-ध्यान द्वारा अपना कल्याण करूंगी। m CCCO युगबाहू देव ने कहादेवी, आपके कारण ही मैंने यह दिव्य ऋद्धि प्राप्त की है। मुझे अब आपकी सेवा का । अवसर भी तो दो। आपके लिए संसार की सब सुख-सुविधा उपलब्ध कराऊँगा। मदनरेखा ने मुस्कराकर कहादेव ! आप क्यों भूल रहे है कि यह सब दिव्य देव ऋद्धि आपको मेरे कारण नहीं, किन्तु धर्म के प्रभाव से मिली है। फिर मुझे अब भौतिक सुख की नहीं, आत्मिक आनन्द की कामना है। CCS a 29 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38