Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवाकर (चित्रकथा)
अंक १२ मूल्य १७.००
महासती मदनरेखा
सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धिः ज्ञान वृद्धि
ne
मनोरंजन
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
प्रकृति भी बड़ी विचित्र है। जहाँ उसने गुलाब में सुन्दरता, सुकुमारता और सुषमा भरी वहीं उसके साथ तीखा काँटा भी पैदा कर दिया। नारी को जहाँ सुन्दरता, सुकुमारता, शील-निष्ठा कर्त्तव्य-परायणता एवं त्याग-बलिदान की प्रतिमा बनाया, वहीं उसकी सुन्दरता के लोभी काँटे भी पैदा कर दिये। ये काँटे ही उसके लिए कष्ट, पीड़ा और त्रास के कारण बन गये।
मदनरेखा सौन्दर्य की अद्भुत प्रतिमा ही नहीं, शील व साहस की जीती जागती देवी थी। उसके रूप का लोभी राजा मणिरथ इतना मोह-उन्मत्त हो जाता है कि मदनरेखा को प्राप्त करने के लिए अपने पुत्रतुल्य छोटे भाई युगबाहू की हत्या भी कर देता है। मदनरेखा अपने शील की रक्षा के लिए घर-परिवार पुत्र राजवैभव सबका मोह त्यागकर अकेली जंगल में भाग जाती है। पग-पग पर कष्ट व भय का सामना करते हुए वह अन्त तक अपने उज्ज्वल चरित्र की रक्षा करती है। प्राणों भी प्यारा है उसे अपना शील। अपना निर्मल चरित्र ।
जैन कथा साहित्य में सती मदनरेखा (मयणरेहा) का चरित्र बहुत प्रसिद्ध और आदर्शों से भरपूर प्रेरक चरित्र है।
विवेक, चातुर्य, साहस, शील-निष्ठा, कर्त्तव्य-परायणता, अविचल धीरता और सबसे बड़ी बात अपने निर्मल-चरित्र की रक्षा के लिए सब कुछ त्याग देने की अदम्य उत्कंठा यह सब आदर्श प्रेरणाएं व्यक्त होती हैं मदनरेखा के चरित्र से। मदनरेखा नारी शक्ति की एक जागृत देवी है। बड़ी रोमांचक और लोमहर्षक है उसकी जीवन कथा |
प्रस्तुत पुस्तक में, श्रमणसंघ के वरिष्ठ सलाहकार मंत्री और जैन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् श्री सुमन मुनि जी म. की प्रेरणा से प्राचीन कथा ग्रन्थों व उत्तराध्ययन सूत्र की टीका के आधार पर मदनरेखा के चरित्र को बड़ी भाव पूर्ण शैली में रेखांकित किया गया है।
- श्रीचन्द सुराना सरस
प्रेरक
श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनि जी म.
संयोजक प्रकाशक संजय सुराना
संपादक
'श्रीचन्द सुराना 'सरस'
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : (0562) 351165, 51789 के लिये प्रकाशित एवं क्विक लेजर आफसेट द्वारा मुद्रित
चित्रांकन श्यामल मित्र
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती IGORE
सुदर्शनपुर के राजा मणिरथ और युवराज युगबाहू दोनों भाइयों में बहुत ही घनिष्ट प्रेम था। प्रजा उन्हें राम-लक्ष्मण की जोड़ी कहती थी। मणिस्थ युगबाहू की सब सुख सुविधाओं का ध्यान रखता था तो युगबाहू भाई की प्रत्येक बात का सम्मान करता था। और उनके इशारों पर जान न्यौछावर करने को तैयार रहता था। मणिस्थ सन्तानहीन था। युगबाहू के एक पुत्र था-चन्द्रयश/
भैया ! इस खेल की चालें तो खत्म होने वाली नहीं... भोजन का समय हो गया है, अब चलिए न?
ANS
Aibition
ALMAITRIAL/
Multin
GOOGG0666
For Private Personal use only
www.ainelibrary
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक बार वर्षा ऋतु के समय मणिरथ राजा अपने एक बार वर्षा ऋतु के समय मणिरथ अपने महलों की छत पर खड़ा संध्या का सुहावना दृश्य देख रहा था। पास ही युगबाहू के महल के बगीचे में उसकी पत्नी मदनरेखा सहेलियों के संग झूला झुलते हुये हंसी-मजाक कर रही थी।
Mic
PA
M
দ ম
T
सती मदनरेखा
Whan
कितना सुहावना मौसम है !
ZMING AND
NC
Gra
THÔNG T
Innin
2
The
JM3
ย
Shawt
ORDRAIL
मतद
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा अचानक मणिरथ की नजर मदनरेखा पर पड़ी। मणिरथ के सामने खड़ी दासी ने निवेदन
कियावाह, क्या गजब की सुन्दता है? लगता है, जैसे स्वर्ग से कोई परी |
महाराज ! यही है आपकी युवरानी! उतर आई है, कौन है यह अप्सरा?
भगवान ने रूप, रंग, बुद्धि सब कुछ दिल खोलकर दिया है। पूरे मालव जनपद में इसकी जोड़ी की सुन्दरी नहीं है।
fr
2.0
SMS
pace
मणिरथ कुछ देर तक मदनरेखा के विषय में पूछता रहा।
अंधेरा गहराने लगा तो मणिरथ लम्बी साँसें। | तभी महारानी ने महलों में प्रवेश किया। राजा को भरता हुआ महल के कक्ष में आकर सिर पर हाथ । उदासी में खोया देखेकर नजदीक आकर पूछाधर कर गुम-सुम सा बैठ गया।
महाराज! आज क्या हो गया DIY आपको? तबियत तो ठीक है न!
YoutuME
"ओह! महारानी।
आप कब आई! मैं तो यूँ ही रामकाज की चिंता में डूबा था... कोई खास बात नहीं....
Jain Education Intemátional
Private Personal use only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
राजा मणिरथ रातभर सो नहीं सका। वासना का भूत उसके सिर पर सवार हो गया। वह रातभर मदनरेखा को अपने चंगुल में फँसाने का जाल बुनता रहा। आखिर उसको एक चाल सूझी।
प्रातः मणिरथ उदास सा मुख बनाकर राजसभा में गया, छोटा भाई युवराज युगबाहू चरण स्पर्श करने आया। उदास देखकर पूछने लगा
nion International
भैया ! क्या बात है? आज आप बहुत चिंतित लगते हैं।
mmmmm
אואט טאטאט
कल सुबह से ही इस योजना पर अमल करूँगा।
100000
Arun
मणिरथ ने अपना जाल फेंका।
ကြည့်ဆိုသည်
नहीं ! कुछ नहीं ऐसे ही बिन बुलाए कुछ विपत्तियाँ आ जाती हैं! तू फिक्र मत कर भाई ! सब ठीक हो जायेगा।
www.jainelibrary.o
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
युगबाहू ने कहा
नहीं भैया ! आपको उदास देखकर मैं चुप कैसे बैठ सकता हूँ। आपकी खुशियों के लिए
मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ.... मुझसे कुछ मत छुपाइए। बताइए भैया क्या बात है?
भाई ! सीमा पार के शत्रु सर उठा रहे हैं। बार-बार पड़ौसी नगरों में लूटपाट मचाते हैं प्रजा.. दुःखी है। इसलिए अब सोचता हूँ युद्ध के लिए जाऊँ और दुश्मनों का सर कुचल डालूं.....
wwwwwwwwwwwwwwww
SUNSNNN
4U
बस, भैया, इतनी सी बात के लिए आप चिंता करते। हैं। मुझे जाने की आज्ञा दीजिए। दुश्मनों के दाँत खट्टे कर आपके चरणों में लाकर पटकता हूँ।
इधर मौका देखकर मणिरथ ने रंभा नाम की दासी को बुलाया। उसे अपना मोती का हार इनाम देते हुए कहारंभा, मदनरेखा, मेरे मन में बस गई है, अब उसे हमारे महल में लाने का काम तुझे करना है। काम होने पर तुझे भरपूर इनाम मिलेगा।
DAOS
महाराज! आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही होगा।
526
H
मणिरथ यही तो चाहता था। सेना साथ लेकर युगबाहू युद्ध करने मालव की सीमा पर चला गया।
Navsanelibrary.org
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
मणिरथ ने जवाहरात और श्रृंगार के सामान से सजे हुऐ थाल की ओर इशारा करके रंभा से कहा
रंभा ! जाओ, पहले यह भेंट मदनरेखा को
हमारी तरफ से दो....
D
100000+
रंभा थाल लेकर मदनरेखा के महल में आई।
युवरानी को दासी रंभा का
प्रणाम ! महाराज आज आप पर बड़े प्रसन्न हैं। यह उपहार महाराज की ओर से...
ओह ! इतने मूल्यवान आभूषण ! इतने सुन्दर परिधान और यह श्रृंगार का साज सामान... अभी क्या जरूरत थी इनकी...?
leaf DOODGE
baaaaai
युवरानी ! यह तो महाराज की प्रसन्नता का प्रसाद है। रख लो, महाराज आप पर बड़े कृपालु हैं .....
मदनरेखा महाराज मणिरथ का पिता के समान आदर करती थी। इसलिए उसने उनका उपहार भी बड़े आदर के साथ स्वीकार लिया।
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
रंभा ने महाराज मणिरथ को सूचना दीमहाराज ! चिड़िया ने दाना चुग लिया है। अब तो जा में फंसी ही समझिए !...
वाह ! तुम्हारा भी जबाव नहीं।
रंभा ने कुटिल हँसी-हँसते हुए कहा| युवरानी ! महाराज आपको बहुत चाहते हैं, यदि आप उनके उपहार नहीं रखेंगी तो उनका दिल टूट जायेगा। महाराज का मन रख लो न..
Jain Education international
सती मदनरेखा
कुछ दिनों बाद फिर मणिरथ ने कुछ श्रृंगार प्रसाधन देकर रंभा को मदनरेखा के पास भेजा। रंभा नयी भेंट सामग्री लेकर आई तो मदनरेखा के मन में कुछ खटक गया। उसने उपेक्षा पूर्वक लौटाते हुए कहा
| मुझे इन सब वस्तुओं की जरूरत नहीं है। जिस स्त्री का पति परदेश में हो, उसे इन श्रृंगारों से क्या काम है, जा वापस ले जा! नहीं चाहिए मुझे....
चतुर मदनरेखा तुरंत रंभा की कुटिल हँसी का मतलब समझ गई। झुंझलाकर उसने डाँटा
रंभा .. तुम हद से आगे बढ़ रही हो.. खबरदार !
www.jalnelibrary.org
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा रंभा ने इसे भी मदनरेखा के प्यार की झिड़की अपने शील धर्म पर कीचड़ उछलते देखकर समझी। उसने हँसकर कहा
मदनरेखा का क्रोध भड़क उठा।।
युवरानी ! प्यार में तुम्हारा क्रोध भी मीठा लगता है न? सचमुच तुम्हारे नाज़-नखरों ने महाराज
का मन मोह लिया है।
बेशर्म दासी ! ठहर अभी तुझे बताती हूँ कि मेरा क्रोध
कैसा लगता है..
ALSI
O
उसने दासी की चोटी पकड़कर नंगी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी। रंभा गिड़गिड़ाने लगी.. OOANT युवरानी, मुझे माफ कर दो!
मैंने तो महाराज के कहने से
यह सब किया है..
दुष्ट बेशर्म ! कीचड़ में खुद कूदती है
और छींटे महाराज पर उछालती है, महारान मेरे पिता तुल्य हैं... झूठमूठ ही उनको बदनाम कर रही है, खबरदार, आगे से कभी ऐसी हरकत की तो...
For Private
Personal use orb
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा रंभा गिड़गिड़ाती मणिरथ के पास आई।। दो दिन बाद मौका देखकर रात के समय मणिरथ स्वयं ही महाराज ! जिसे बकरी समझा, वह तो
| अकेले युगबाहू के महलों की तरफ चल दिया। वहाँ पहुँचकर खूखार शेरनी निकली.. आज तो मरती-मरती
| उसने मदरेखा के कक्ष का दरवाजा खटखटाया।। बच गई, अब मैं कभी उसके पास नहीं इतनी रात 00 जाऊँगी.. मुझे नहीं चाहिए आपका इनाम..
गये कौन हो सकता है।
500000
GALI
HOME
यह कहकर रंभा चली गई।
क्या काम
मदनरेखा ने उच्च स्वर में पूछा-
कौन है?
NIROIDyANNEL
SANA
कम
Online
मैं हूँ ! मणिरथ ! दरवाजा खोलो ! देखो तुम्हारे लिए | क्या-क्या लाया हूँ।
मदनरेखा ने मणिरथ के बुरे इरादों को भांप लिया। उसने भीतर से ही आवाज दी
मेठजी ! आप भूल गये यह तो
आपके छोटे भाई का कक्ष है। आपका कक्ष उधर है! उधर जाइए।
non
RitiRLIRIRITUALLERIA VIRUBILLIDULLATINILALL
EHA
900
STRAYAN
ALDILAR
FORI
CU00
UV
creur
Jain Education
inww.jainelibrary.org.
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
मणिरथ बोला
नहीं, मैं तुम्हारे कक्ष में ही आना चाहता हूँ। भाई युद्ध में गया हुआ है। न? तुम उदास बैठी हो। इसलिए तुम्हारा मन बहलाने के लिए कुछ उपहार लाया हूँ.. दरवाजा खोलो..)
सती मदनरेखा मदनरेखा सकपका गई। भीतर दरवाजे की साँकल बंद करके वह दूसरे दरवाजे से निकलकर अपनी सास के पास पहुंची और उसे सब बता दिया। चतुर माता पुत्र के दुर्भावों व बुरी आदतों से परिचित थी। उसने मणिरथ को आवाज लगाई।
मणिस्थ ! तुम रास्ता भूल गये बेटा ! यह तुम्हारा महल नहीं, छोटे भाई का महल है... अपने महल में जाओ...
0000000000000000000
66oo000000SABoo.
Doooooooo0000
माता की ललकार सुनते ही मणिरथ पर सौ-सौ घड़ा पानी गिर गया। वह मुँह छिपाये चुपचाप अपने महलों की तरफ लौट गया।
इसी दौरान सीमा पार के शत्रुओं को विजय करके युगबाहू सकुशल राजधानी में लौट आया। मणिरथ का मन भीतर से मुझ गया था। परन्तु ऊपर से खुशियाँ दिखाते हुए उसने छोटे भाई का विजयोत्सव मनाया।
युवराज युगबाहू चिरायु हो।
JODHD00001
DODX
NEW
NDI
00000
ducation International
10 For Private Personal use only
www.ainelibrary.org
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
एक दिन युगबाहू ने मदनरेखा से कहाप्रिये ! अब बसन्त का सुहावना मौसम है और तुम भी शीघ्र ही हमारी दूसरी सन्तान की माँ बनने वाली हो, इसलिए हम उद्यान में जाकर कुछ दिन बसन्त-विहार करना चाहते हैं।
दूसरे दिन युगबाहू-मदनरेखा बसन्त ऋतु का आनन्द लेने राजकीय उद्यान के आराम गृह में चले गये।
देखो, कितना सुहाना मौसम है। हम कुछ दिन यहीं रहेंगे।
(स्वामी ! मेटी भी यही इच्छा है।
इस शुभ काम में देर क्यों!...
FAVAM
albps
573
NROTRAL
कृष्ण पक्ष की काली रात को मणिरथ अकेला हाथ में तलवार लिए घोड़े पर चढ़कर उद्यान की ओर चल पड़ा। सुनसान रात में मणिरथ को आगे बढ़ते हुए चौकीदार ने टोका
कुटिल मणिस्थ, युगंबाहू-मदनरेखा की पलपल की खबर रखता था। गुप्तचर ने आकर उसे सूचना दी
महाराज ! युवराज-युवरानी एक सप्ताह के लिए उद्यान के आरामगृह में बसन्त-विहार करने चले गये हैं... रात को भी वहीं अकेले रहते हैं।.. सिर्फ दो अंगरक्षक साथ ले गये हैं।
कौन है?
200
N
यह सुनकर मरिणरथ को अपने मनसूबे पूरे करने को एक रास्ता सूझ गया।
11
Jan Education International
For Private, & Personal Use Only
nelibrary.org
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
चौकीदार ने जाकर युगबाहू को जगाया।तुरत-फुरत युगबाहू कपड़े । बदलकर चलने को हुआ, तभी चौकीदार ने रोक दिया
रामसिंह ! मैं हूँ महाराज मणिरथ। युगबाहू से मुझे बहुत आवश्यक काम है.. अभी इसी वक्त मिलना है...
CALOR
क्षमा करें महाराज ! इस वक्त कोई भी भीतर नहीं जा सकता... आप यहीं रुकिये। मैं युवराज को सूचित करता हूँ।
RAVयुवराज ! क्षमा करे ! मुझे PAT कुछ दाल में काला लग रहा
है। महाराज अकेले हैं, हाथ में नंगी तलवार हैं, ऐसे में आपका उनसे मिलना उचित A नहीं लगता।
मदनरेखा ने सुना तो वह एक बार कंपकपा उठी। उसे पिछली घटनाएं एक-एककर याद आने लगीं। उसने युगबाहू रोकना चाहा
मदन ! तुम्हें शर्म आनी चाहिये। रुकिये स्वामी ! अभी आप मत जाइए।
तुम मेरे पवित्र भाई पर इतना जेठ जी पर वासना का भूत सवार है,
बड़ा लांछन लगा रही हो? वे कुछ भी अनर्थ कर सकते हैं।
AADIMALARIADMRITTINETY
ARTILAMONWALLAINERY
VMVVW
DOOOOOOK
al
hal
12
andarayong
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
मदनरेखा ने कहास्वामी ! लांछन नहीं, हकीकत है। मैने आज तक आपसे सब कुछ छिपाया, सिर्फ इसलिए कि भाई-भाई के प्रेम में भेद न पड़े। परन्तु
आज सच-सच बता देना चाहती हूँ।
मदनरेखा ने पिछली घटनाएं सुनाई तो युगबाहू का खून-खौलने लगा। उसने हाथ में तलवार उठा ली। भाई के वेश में शैतान छुपा है। अभी उसकी नहीं। नहीं स्वामी खबर लेता हूँ। भाई-भाई में खून खराबा
हो यह उचित नहीं है।
HE
Shannon
नागि
Anpur
मदनरेखा ने युगबाहू को टोका,
तब तक मणिरथ धडधडाता कक्ष के अन्दर आ गया। युगबाहू संभलता उसके पहले ही उसने तलवार के तीव्र प्रहार से उसे घायल कर दिया।
और मणिरथ पीछे के दरवाजे से। निकलकर भाग गया।
ओह ! भैय्या, तुमने यह क्या कर डाला?
MITITITHILE
RATULA
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
युगबाहू के शरीर से खून के फव्वारे छूटने लगे। वह जमीन पर गिरकर तड़फने लगा। मदनरेखा ने उसका सिर अपनी गोद में लिया और धीरज बँधाने लगी।
उद
やす
'स्वामी ! अब आपके प्रस्थान का समय है, मन को शांत रखिए। भाई पर क्रोध मत कीजिए न मुझ पर मोह रखिए। राज्य, पत्त्नी, पुत्र, किसी की चिंता मत कीजिए। णमोकार मंत्र जपिए, उसी से आपको सद्गति मिलेगी, पर लोक में सुख मिलेगा
Saldind
{{a[11
युगबाहू के शरीर से लगातार खून बह रहा था और मदनरेखा उसके मन को शान्त, द्वेष रहित, मोह मुक्त बनाने का प्रयत्न कर रही थी। अन्तिम आराधना सुनकर युगबाहू का क्रोध शान्त हो गया।
अचानक एक हिचकी आई। युगबाहू ने आँखें मूँद लीं। मदनरेखा दो पल के लिए फूट-फूटकर रोने लगी।
कुछ देर संभाला।
WOME
रोने-बिलखने के बाद, मदनरेखा ने स्वयं को
मेरा पुत्र चन्द्रयश अभी छोटा है, जेठ जी के सिर पर कामवासना का भूत सवार है। भाई की हत्या भी कर चुके हैं, अब मेरे शील पर भी आक्रमण कर सकते हैं। अतः मुझे, पुत्र और राज्य की चिंता न करके अपने शील की रक्षा करनी चाहिए।
14
40003
.
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा तब तक राजकुमार चन्द्रयश, मंत्री, सेनापति आदि लोग एकत्र हो गए और युवराज युगबाहू के अन्तिम संस्कार की क्रिया में जुट गये। मदनरेखा ने सोचा
यह अवसर है मैं अब जंगल में भाग (जाऊं ताकि जेठ जी के क्रूर शिकारी हाथों
से अपने शील धर्म की रक्षा कर सकूँ।
000000
JUUUUUM
मदनरेखा महलों के पिछले दरवाजे से मंगलसांय-सांय करते बीहड़ जंगलों में मदनरेखा की ओर निकल पड़ी।
अकेली कई दिनों तक भटकती रही। TTAMAN अब तो मुझे अपनी नही, होनी वाली सन्तान की
सोच है।
More 000000000000000
15
Jan Education international
www.jairielibrar.org
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करते हुए वह एक पहाड़ी के नीचे पहुँच गई। सामने एक विशाल तालाब था, और इधर बीहड़ जंगल। वहीं पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने साड़ी का एक पल्लू फाड़कर झोली बनाई। पुत्र को वृक्ष की डाल पर टांगकर अपनी शरीर शुद्धि के लिए तालाब की तरफ चल दी।
Minum
तभी उसने देखा, सामने चिंघाड़ता सूँड उछालता, पागल हाथी! मदनरेखा एक बड़े बरगद की ओट आक्रमण करने लपककर आ रहा है।
में छुपने की चेष्टा करने लगी।
Miner
Corner
16
the
.
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा तभी मदोन्मत्त हाथी ने उसे सूंड में पकड़कर उसी समय कोई विद्याधर अपने विमान में बैठकर गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया।
उधर से निकल रहा था। उसने आकाश से गिरती मदनरेखा को देखा।
Matmlu
9.DA
अरे यह क्या ! कोई स्त्री र आकाश से गिर रही है,
बचाऊँ इसे।
ANTINWA
PAIN
Sound
TEE
सीकर
और उसे अपने विमान में झेल लिया।
बेचारी नीचे गिरती तो मर जाती।
بدسم
17
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा | मदनरेखा बेहोश थी। उसका खिला यौवन और | सुन्दरता देखकर विद्याधर का मन मुग्ध हो गया।
| उसने शीतल जल छिड़कर मदनरेखा को स्वस्थ किया।
ऐसी अपूर्व सुन्दरी तो मेरे महलों की शोभा बढ़ायेंगी, इसे अपनी रानी
बनाऊँगा..
INS
Juin Education International
0000
इन बियावान जंगल में ऐसी अप्सरा-सी सुन्दर युवती! अवश्य ही कोई विपत्ति में फंसी है।
और विमान को वापस उलटी दिशा में मोड़ लिया।
पहले इसे महलों में छोड़कर फिर आगे जाऊँगा।
18
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
कुछ देर बाद मदनरेखा को होश आया। उसने एक विद्याधर युवक को कामुक दृष्टि से अपनी ओर निहारते देखा तो काँप गई
हे भगवान कैसी है मेरी तकदीर ... ! राजमहल छोड़कर) जंगल में भाग आई। नवजात शिशु को छोड़कर सरोवर पर गई तो हाथी ने उछाल दिया और अब यह अकेला युवक मेरी सुन्दरता पर गिद्ध दृष्टि डाल रहा है
हे प्रभु ! कैसी है कर्मों की लीला !..
000
AUTO TITULO THANp ILLAHABAZAALVETHYA
RATANI
विद्याधर यवक ने मस्कराकर मदनरेखा की तरफ देखा। मदनरेखा ने हिम्मत करके पूछा
मदनरेखा पहले तो सहमी फिर तरंत सम्हल गई
भाई! तुमने मेटी जीवन-रक्षा की है न? अब जीवन दान देकर जीवन लूटने की बात कर रहे हो? तो लो... शील-रक्षा के लिए मैं अपनी जान भी दिये देती हूँ
भाई ! तुम कौन हो? कहाँ जा रहे हो? मुझे क्यों बचाया तुमने..? मर रही थी तो मरने देना था, न?
सुन्दरी ! अमृत पीने के लिए होता है न कि मिट्टी में मिलने के लिए।
तुम्हारा अद्भुत यौवन, अपूर्व सौन्दर्य जीवन का सुख भोगने के लिए है..... तुम मेरे महलों में
आनन्दपूर्वक रहना।
19
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
| मदनरेखा ने अपनी जीभ खींची। शील भ्रष्ट होने से तो मौत अच्छी।
Lum
आश्वस्त होने पर मदनरेखा ने विद्याधर से पूछा
भाई ! तुम कहाँ जा रहे थे
224104
सती मदनरेखा
विद्याधर घबरा गया। उसने मदनरेखा को रोका।
ना ! ना ! तुम जान मत दो! जैसा कहोगी वैसा करूँगा... तुम डरो मत...
तुम्हारा नाम क्या है ?
मेरा नाम मणिप्रभ विद्याधर है। मैं अपने पिता मुनिराज के दर्शन करने जा रहा था। बीच में तुम मिल गईं तो सोचा पहले तुम्हें अपने महलों में पहुँचा दूँ।
Dad's
ना ! ना ! शुभ काम में विघ्न मत डालो! मुझे भी तो अपने पिता श्री मुनिराज के दर्शन कराओ!
20
अवश्य ! अवश्य ! चलो हम पहले मुनि दर्शन ही करेंगे।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा मदनरेखा को लेकर विद्याधर सीधा मुनिराज की धर्मसभा में पहुंचा। मुनि मनोभावों को समझने वाले मनःज्ञानी थे। अपने पुत्र के मलिन गन्दे विचारों को समझते देर नहीं लगी। इसलिए उन्होने इसी विषय पर अपना उपदेश दिया
पर स्त्री पर बुटी दृष्टि डालने turket ओह ! मैं यह क्या अनर्थ करने
वाला उसी प्रकार नष्ट हो जाता। जा रहा था...?
है जैसे दीये की लो पर पतंगा।
रावण, कीचक, दुर्योधन की दुर्गति का यही तो कारण था.../
000M
AN
Dow
मुनि का हृदयस्पर्शी उपदेश सुनकर मणिप्रभ विद्याधर की आँखे खुल गई।
बहन ! मुझे क्षमा कर देना, मैंने तो सिर्फ तुम्हें धरती पर गिरने से ही बचाया, परन्तु तुमने तो मुझे नरक में गिरने से लिया।
भाई! आपके पवित्र विचारों का मैं स्वागत
करती हूँ।
GAJa
cu le
DEn
तभी आकाश से एक देव विमान नीचे उतरा। उसमें से एक देव निकला, वह सीधा मदनरेखा के सामने आकर उसे नमस्कार करके बोलादेवी ! तुम महान हो, तुमने मेरा उद्धार कर दिया।
देव, ऐसा कुछ मत कहिए। तुम्हारे सदुपदेश के प्रभाव से ही मैं इस दिव्य देव । ऋद्धि का स्वामी बना हूँ। तुम मेरी उपकारी हो।
Meera ad
10
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
मदनरेखा ने आश्च के साथ कहा
देव ! आप कौन हैं? मैं तो आपको पहचानती नहीं. हूँ, फिर. उपकार की बात कैसी?
.... और मैंने शुभभावों के साथ प्राण त्यागे। इसी प्रभाव से मैं देव विमान में उत्पन्न हुआ। तुमने मुझ पर महान उपकार किया है इसलिये मैं सर्वप्रथम तुम्हारे दर्शनों के लिये आया हूँ।
सती मदनरेखा
033X}}}
देव बोला
मदनरेखा, मैं युगबाहू हूँ। मरते समय भाई के प्रति मेरे मन में रोष और द्वेष की लपटें उठ रही थीं परन्तु तुमने जो शान्ति और समभाव की शिक्षा दी, उससे मेरा क्रोध शान्त हो गया। णमोकार मंत्र के श्रवण से मेरे मन को शान्ति मिली।
हर्ष और विस्मय से विभोर होकर मदनरेखा बोली
पति को सद्गति प्रदान करने में ही पत्त्नी के कर्त्तव्य की सफलता है। आज मैं अपनी सब दुःख और पीड़ाएँ भूल गई.. मेरा जीवन सफल हुआ...
22
VIDEO
/
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
देव ने कहा
मदनरेखा ! तुमने अपनी शीलरक्षा के लिए जो बलिदान दिया है, जितने कष्ट सहे हैं, वे समस्त नारी जाति के लिए गौरव बनकर रहेंगे.. मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर सका, परन्तु तुमने मेरा उद्धार कर दिया... मुझे अब कोई सेवा का अवसर दो..
मदनरेखा ने कहा
आपको सद्गति मिली तो मुझे सब कुछ मिल गया.. अब कुछ भी कामना शेष नहीं है बस एक बात जानना चाहती हूँ कि वन में मैंने जिस पुत्र को A जन्म दिया वह किस स्थिति में है.. कहाँ है...'
(देव, ऐसा कुछ
मत कहिए।
0409-Ma
CCCECO
CCCES
देवी ! आप जानना चाहती हैं तो वह सभी घटना क्रम मैं आपके सामने उपस्थित करता हूँ। देखिए.....
जंगल में मिथिला का राजा पमरथ सेना लेकर हाथियों को पकड़ने के लिए आया हुआ है।
UTUKAR
DesKarovi
२ana
23
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा उसी के शोर से क्रुद्ध हुआ एक विशाल काय हाथी दौड़ता सेना सहित पन रथ राजा हाथी का पीछा करता हुआ आया। छुपी हुई मदनरेखा को भी उसने अपना शत्रु हुआ उधर ही आ पहुँचा। हाथी गहरे घने जंगल समझा और उसे सूंड में पकड़कर आकाश में उछाल दिया। की ओर भाग गया।"
*TA
ALDAON
तभी पद्मरथ के कानों में एक नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई पड़ी
अरे यह तो किसी बच्चे के रोने की आवाज है।
amY
Rism
wh
1009
D
IVIROMEMADI
24
Education International
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
पास पहुंचकर पद्मरथ ने शिशु को देखा तो आनन्द से झूम उठता है
मुझ निःसन्तान को आज भाग्य ने सन्तान दे दी है।
राजा पद्मरथ शिशु को लेकर वापस मिथिला नगरी में आया और उसे महारानी को सौंपते हुए बोला
महारानी ! देखो हमारा भाग्य। पुत्र की कामना से तुम व्याकुल थीं, आज पूर्ण हो गई। कितना सुन्दर और तेजस्वी पुण्यशाली बालक है। इसे
ही अपनी सन्तान मानकर पालो।
रानी भी बालक को देखकर आनन्द में झूम उठी। मिथिला नगरी में धूम धाम के साथ पुत्र जन्म का उत्सव मनाया गया
इसके आते ही हमारे सब शत्रुस नम गये हैं, अतः हम इस बालक) H Aका नाम नमिकुमार रखेंगे|
Shesse
Hat
TIME
HLIDII
minimum
HOAININRIGINAROJ
LEARN
कायाला
TATARRI
MANDIDIORAI
HISTORY
और आज से यह हमारा)
उत्तराधिकारी है।
25
forsonal use only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
मदनरेखा को झांकियों की तरह यह सारा घटनाक्रम दिखला कर देव ने कहा
मदनरेखा, तुम्हारा छोटा पुत्र सुरक्षित है और मिथिला के युवराज के रूप में
बड़ा होगा।
अरे हाँ, उसका भी समाचार सुनो।
मदनरेखा की आँखों में हर्ष के आँसू छलछला उठे
भाग्य, जिसकी रक्षा करता ( है, काल भी उसका कुछ
नहीं बिगाड़ सकता।
मेरा बड़ा पुत्र चन्द्रयशे किस हाल में है?
AAJAN
NHA
Mintuline
C.CLCLECd
26
o callon International
For Private & Personal use only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा मुझ पर तलवार का प्रहार करके भाई मणिरथ अंधेरे में भागा।
ADOOO
OULTRAINIK
भागते-भागते एक काले नाग पर उसका पाँव पड़ गया। विषधर ने डंक मारा।
और मणिरथ वहीं ढेर हो गया। उसने जैसा कर्म किया वैसा फल उसे मिल गया। अब
GिP
New
27
aliana
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा उधर चन्द्रयश को जब यह पता चला तो उसने अत्यन्त दुखी मन से अपने पिता और ज्येष्ट पिता का अन्तिम संस्कार किया।
INW
प्रजा ने उसका राज तिलक कर सुदर्शन पुर का राजा मान लिया।
ALL
।
JAVALILION
28
www.ja
helibrary.
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा घटनाक्रम दिखला कर देव बोला
मदनरेखा ने कहादेवी अब तुम्हारे कष्टों के दिन दूर चले गये।
देव, पति को सद्गति मिल गई। पुत्र सुखी है, तो फिर "अब तुम जहाँ मिस पुत्र के पास रहना
मुझे किसकी चिंता...? मैं अब अपना कल्याण करना चाहो, बोलो, मैं तुम्हें वहीं पहुंचा दूंगा।
| चाहती हूँ। इसलिए जहाँ भी कोई योग्य साध्वी समुदाय हो, वहीं मुझे पहुँचा दो। मैं अब दीक्षा लेकर संयम तप-त्याग-ध्यान द्वारा अपना कल्याण करूंगी।
m
CCCO
युगबाहू देव ने कहादेवी, आपके कारण ही मैंने यह दिव्य ऋद्धि
प्राप्त की है। मुझे अब आपकी सेवा का । अवसर भी तो दो। आपके लिए संसार की सब सुख-सुविधा उपलब्ध कराऊँगा।
मदनरेखा ने मुस्कराकर कहादेव ! आप क्यों भूल रहे है कि यह सब दिव्य देव ऋद्धि आपको मेरे कारण नहीं, किन्तु धर्म के प्रभाव से मिली है। फिर मुझे अब भौतिक सुख की नहीं, आत्मिक आनन्द की कामना है।
CCS
a
29
.
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
तो फिर अब मुझे उसी धर्म की
शरण में जाना है।
देवी, तुम ठीक कह रही हो, अगर अन्तिम समय मैंने धीरता, गंभीरता नहीं रखी होती तो शायद मैं दुर्गति का मेहमान बनता."यह सब धर्म का ही प्रभाव है।
SalveAS
धन्य हैं
-तुम्हारे विचार)
OCD
देव ने मदनरेखा को अपने दिव्य विमान में बैठाकर मिथिला में विराजित साध्वी सुदर्शना जी की सेवा में पहुंचा दिया। मदनरेखा का वैराग्य, विवेक और साहस देखकर साध्वी जी ने उन्हें दीक्षा प्रदान की। सुव्रता नाम रखा गया। सती मदनरेखा ने साध्वी सुव्रता बनकर तप-ध्यान द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की।
पपपपज
पल्स
समाप्त
130
lain Education International
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
भाई-भाई का मिलन और नमिराज की प्रव्रज्या
युगबाहू देव ने सती मदनरेखा को मिथिला नगरी में साध्वी सुदर्शना जी के पास पहुँचा दिया।
मदनरेखा का वैराग्य भावित हृदय देखकर साध्वी जी ने उसे दीक्षा की स्वीकृति देदी। तब पुत्र से बिना मिले ही साध्वी सुदर्शना जी के पास दीक्षा ग्रहण कर तप - जप ध्यान - स्वाध्याय में लीन रहने लगी ।
मिथिला के राजा पद्मरथ के राजभवन में नमिकुमार का पालन-पोषण होने लगा । युवा होने पर वह सभी कलाओं में प्रवीण बन गया। उसके पराक्रम और राजनीति कौशल से बडे-बडे राजा उसके आज्ञा अधीन हो गये ।
एकबार नमिराज का एक सुन्दर विशालकाय हाथी पागल होकर भागकर जंगल में चला गया। वह कज्जल गिरि सा सुन्दर शुभ लक्षणों वाला हाथी नमिराज को अत्यन्त प्यारा था। नमिराज की सेना ने हाथी को पकड़ने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु हाथी पकड़ में नहीं आया। वह पड़ोस के राज्य सुदर्शन पुर के जंगलों में घुस गया। सुदर्शन पुर में युगबाहू के बड़े पुत्र चन्द्रयश का राज्य था । प्रजा ने राजा चन्द्रयश से पुकार की एक विशाल काय गजराज हमारी फसलों को तहस नहस कर उत्पात मचा रहा है। हमारी रक्षा कीजिये ।
चन्द्रश भी बड़ा वीर और रणनीति कुशल था। उसने अपने कौशल से उस हाथी को पकड़ लिया और लाकर अपनी गजशाला में बांध लिया।
नमिराज के गुप्तचरों को पता चला कि हमारा हाथी सुदर्शन पुर के राजा की गजशाला में पहुँच गया है। तो उन्होंने महाराज नमि को सूचना दी। नमिराज ने चन्द्रयश के पास दूत भेज-आप हमारे हाथी को वापस कर दीजिए ।
चन्द्रयश ने करारा उत्तर दिया, यह हाथी किसका है, हमें नही पता, परन्तु इसने हमारी प्रजा को कष्ट दिया है, फसलों को नष्ट किया है इसलिए हमारा अपराधी है। अपराधी को हम नहीं छोड़ सकते।
दूतों के सन्देश व बातचीत से समस्या नहीं सुलझी तो नमिराज ने सुदर्शन पुर पर आक्रमण कर दिया। नगर को चारों ओर से घेर लिया। कई दिन तक युद्ध होता रहा, मनुष्यों का खून बहता रहा, परन्तु नमिराज की सेना सुदर्शनपुर के द्वार तोड़कर नगर में नहीं घुस सकी। नमिराज बहुत चिंतित था ।
रात में नमिराज ने अपने सेनापतियों को बुलाकर आदेश दिया- कल किसी भी प्रकार सुदर्शनपुर के दुर्ग तोडकर हमें नगर में प्रवेश करना ही है।
प्रातः काल जैसे ही युद्ध की भेरी बजी हाथियों व योद्धाओं की सेना ने सुदर्शन पुर पर चारों तरफ से प्रचण्ड आक्रमण कर दिया। तभी अचानक दो श्वेत वस्त्र धारिणी साध्वियाँ नमिराज की युद्ध छावनी की तरफ प्रविष्ट हुई।
प्रहरियों ने साध्वियों को द्वार पर रोका, तो साध्वी सुव्रता ने प्रहरी से कहा, अपने महाराज को सूचित करो, दो श्रमणियाँ उनसे मिलना चाहती है।
युद्ध भूमि में श्रमणियों के आगमन की सूचना पाकर नमिराज विस्मित हो गया। फिर भी वह श्रमणियों के पास आया। नमस्कार कर उसने कहा- आर्याजी, आप तो जानती है, युद्धभूमि में श्रमण श्रमणियों को नहीं आना चाहिए, फिर आपने ऐसा क्यों किया ?
साध्वी सुव्रता बोली- राजन् ! मैं जानती हूँ युद्धभूमि में श्रमण का जाना निषिद्ध है, परन्तु कभी-कभी भयंकर हिंसा को रोकने के लिए अपवाद मार्ग पर भी चलना पड़ता है, आपसे मिलने व उपदेश देने को यही उपयुक्त अवसर समझकर हमें यहां आना पड़ा है। -
नमिराज - अभी मैं युद्ध की तैयारी में यह बात करने का अवसर नहीं है, नही धर्म उपदेश सुनने का अवसर है कृपाकर संक्षेप में ही आप अपनी बात कहकर वापस पधार जाइए !
साध्वी सुव्रता- राजन् ! मैं आपसे एक ही बात पूछने आई हूँ, कि यह भयंकर नरसंहार किसलिए कर रहे हैं ?
For Privar Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
सती मदनरेखा
साध्वी सुव्रता के बहुत आग्रह करने पर नमिराज ने कहा
हमारे पट्ट हस्ती को सुदर्शन पुर के राजा चन्द्रयश ने बंदी बना लिया है। हम अपना हाथी वापस लेना चाहते हैं वह देता नहीं, बस यही युद्ध का कारण है।
साध्वी सुव्रता ने मुस्कराते हुए कहा- राजन ! क्या हजारों मनुष्यों के रक्त से भी एक हाथी का महत्व अधिक है ? नमिराज-आर्या जी ! यह हाथी के महत्व का प्रश्न नहीं है किन्तु राजनीति की प्रभुसत्ता का प्रश्न है।
साध्वी सुव्रता–क्या छोटे भाई की कोई वस्तु बड़ा भाई ले लेवे तो इसके लिए युद्ध किया जाता है ?
नमिराज उत्तेजित होकर बोले - आर्या जी ! आप इस युद्धभूमि में व्यर्थ के प्रश्न नही करें तो अच्छा है, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ यहाँ छोटा भाई- बड़ा भाई का क्या प्रसंग है ?
साध्वी सुव्रता- राजन ! यही तो सचमुच अज्ञान है। और अज्ञान ही सब अनर्थों की जड़ है। आप नही जानते जिस राजा चन्द्रयश के साथ आप घनघोर युद्ध कर रहे हैं वह आपका सगा बड़ा भाई है।
नमिराज उत्तेजित हो उठे - आर्या जी ! आप सत्यव्रत धारिणी हैं ये बेसिर-पैर की बाते आपके मुख से शोभा नहीं देती। फिर मैं तो राजा पद्मरथ का इकलौता पुत्र हूँ। मेरा कोई भी भाई नहीं। मेरी माता ने एक ही सन्तान को जन्म दिया है।
साध्वी सुव्रता - ( हंसकर ) राजन ! आप जो जानते हैं वह सत्य नहीं है और जो सत्य है उस को आप नहीं जानते हैं। यही आपका अज्ञान है। आप विश्वास रखें-निर्ग्रन्थ श्रमणी कभी असत्य नही बोलती ।
नमिराज - फिर सत्य क्या है ? क्या आप जानती है मेरे माता-पिता कौन है ?
साध्वी सुव्रता-हाँ, अभी यही बात कहने को यहाँ आई हूँ। आप राजा पद्मरथ के नहीं किन्तु सुदर्शनपुर के स्वर्गीय राजा युगबाहू के द्वितीय पुत्र हैं, चन्द्रयश आपका भाई है।
नमिराद - मेरी माता कौन है ?
साध्वी सुव्रता- आपके सामने खड़ी है। मेरी आँखों में देखिए क्या आपको इन आँखों में माता की ममता का अहसास नहीं हो रहा है ? क्या मेरी वाणी वत्सलता ने आपके हृदय को नहीं छूआ ?
नमिराज़ अवाक् खड़े साध्वी सुव्रता जी को देखते रहे ।
साध्वी जी ने अतीत की समूची घटना नमिराज को सुनाई। वह माता के चरणों में झुक गया। और बड़े भाई से मिलने को आतुर हो उठा। साध्वी सुव्रता जी ने कहा- अभी उतावला न हो, पहले मैं राजा चन्द्रयश के पास जाती हूँ। साध्वी सुव्रता जी ने सुदर्शन पुर के द्वार रक्षकों के साथ महाराज चन्द्रयश के पास सूचना भेजी - आपकी माताश्री मदनरेखा आप मिलना चाहती हैं। सूचना मिलते ही चन्द्रयश दौड़कर आया। माता को साध्वी वेश में देखकर वह पहले चकित हुआ । फिर सारी घटना सुनकर स्वयं ही भाई नमिराज से मिलने के लिए दौड़ पड़ा। युद्धभूमि अब भाई-भाई के प्रेम मिलन की भूमि गई। साध्वी सुव्रता जी के सामयिक उपदेशों ने भयंकर नर-संहार को रोक दिया और दो देशों की प्रजा में प्रेम एवं शान्ति की गंगा बह उठी ।
अन्त में चन्द्रयश ने नमिराज को सुदर्शन पुर का राज्य सोंप कर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली।
नमिराज बहुत वर्षों तक प्रतापी सम्राट के रूप में राज करते रहे। एकबार उनके शरीर में दाध ज्वर उत्पन्न हुआ, विबिध उपचारों से भी शान्त नहीं हुआ। शरीर पर चन्दन लेप के लिए रानियाँ चन्दन घिस रही थी, उनके कंगनों की खट-खट ध्वनि से नमिराज को बैचेनी हुई। तो हाथ में एक एक कंगन रखकर रानियाँ चन्दन घिसने लगी। नमिराज के पूछने पर कि अब आवाज क्यों नहीं आ रही है । रानियों ने कहा- अकेला कंगन आवाज नहीं करता ।
बस इसी संकेत पर चिन्तन करते हुए नमिराज का अन्तःकरण जागृत हो गया। “अकेले में ही शान्ति है। दो के संपर्क से ही अशान्ति पैदा होती है।" इसी चिन्तन में नमिराज लीन हो गये। दाध ज्वर शान्त हो गया और वे राजपाट त्यागकर एकाकी संयम पथपर चल पड़े। उत्तराध्ययन सूत्र के नमिपव्वज्जा अध्ययन में नमिराज और इन्द्र महाराज के सुन्दर वैराग्य पूर्ण प्रश्नोत्तर उनकी वैराग्य गाथा को प्रकाशित कर रहे हैं।
For Private & Sonal Use Only
32
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
888888067806786886386ठस
छ
ठठठठठल
%ARPITRIPPEPREPARRIER
का
एक बात आपसे भी
画画
RRORMERRORSCORRESENDRARAMMARRORDINATORREARRAp
सम्माननीय बन्धु,
सादर जय जिनेन्द्र!
जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियाँ का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से
प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने प्रारम्भ किया है। 8 इन चित्र कथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास, संस्कृति,
धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा। है हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के
साथ छपे सदस्यता फार्म पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें। 8 आप एकवर्षीय सदस्यता (११ पुस्तकें), दो वर्षीय सदस्य (२२ पुस्तकें), तीन वर्षीय सदस्यता (३३ पुस्तकें), चार वर्षीय सदस्यता (४४ पुस्तकें), पाँच वर्षीय सदस्यता (५५ पुस्तकें) ले सकते हैं।
आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट/M. O. प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्ट्री से अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक (आपकी सदस्यता के अनुसार) हर माह डाक द्वारा आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद!
आपका नोट-अगर आप पूर्व सदस्य हैं तो हमें अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम उससे आगे के अंक ही आपको भेजेंगे।
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
सम्पादक दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ क्षमादान • सती मदनरेखा
• मृत्यु पर विजय भगवान ऋषभदेव • युवायोगी जम्बू कुमार
• आचार्य हेमचन्द्र और सम्राट कुमार पाल • णमोकार मंत्र के चमत्कार . मेघकुमार की आत्म-कथा
• अहिंसा का चमत्कार चिन्तामणि पार्श्वनाथ . बिम्बिसार श्रेणिक
• महायोगी स्थूल भद्र . भगवान महावीर की बोध कथायें महासती अंजना
• अर्जुन माली : दुरात्मा से बना महात्मा • बुद्धि निधान अभय कुमार
चक्रवर्ती सम्राट भरत
• पिंजरे का पंछी शान्ति अवतार शान्तिनाथ भगवान मल्लीनाथ
चन्द्रगुप्त और चाणक्य किस्मत का धनी धन्ना ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती
भक्तामर की चमत्कारी कहानियाँ करुणा निधान भ. महावीर (भाग १, २) महासती
• महासती सुभद्रा 8. राजकुमारी चन्दनबाला
• विचित्र दुश्मनी
. असली खजाना सिद्ध चक्र का चमत्कार
• भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण महासती सुलसा
238,32,99-38-392-93-98-28-08-28-30-30-39-
4101290888RREARRIRAORARRIORAORARRIORAINARIOR
proaca
I RRANGACADEMORE
అంగాంగారించిందించిందింగిందించిందింకంగంలో
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
वार्षिक सदस्यता फार्म
SENTENTIREMENTATIRIDI0000000mmmmmm
मान्यवर, .मैं आपके द्वारा प्रकाशित दिवाकर चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए। सदस्यता प्रदान करें।
(कृपया उचित जगह 1 का निशान लगायें) एक वर्ष के लिए (११ पुस्तकें) १७०/- दो वर्ष के लिए (२२ पुस्तकें) ३२०/0 चार वर्ष के लिए (४४ पुस्तकें) ६००/- 0 पाँच वर्ष के लिए (५५ पुस्तकें) ७५०/मैं शुल्क की राशि एम. ओ./ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। नाम Name 1 (in capital letters) पता Address
पिन Pin . M.O./D. D. No..
Bank
-Amount
STITTIIIII
m mon
OMotoroPAPER
नोट-पुराने सदस्य कृपया अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम अपने 'आप उनकी सदस्यता का नवीनीकरण अगले वर्षों के लिए कर देंगे।
EFTITETT Sign.
कृपया चैक के साथ 20/- रुपया अधिक जोड़कर भेजें। 8 चैक/ड्राफ्ट/M.O. दिवाकर प्रकाशन, आगरा के नाम से निम्न पते पर भेजे।
DIWAKAR PRAKASHAN & A-7. AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD. AGRA-282 002 PH. : (0562) 351165, 51789
हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम
मूल्य सचित्र भक्तामर स्तोत्र ३२५.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग २) ५००.०० सचित्र भावना आनुपूर्वी २१.०० सचित्र णमोकार महामंत्र १२५.०० सचित्र कल्पसूत्र
५००.०० भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) । सचित्र तीर्थंकर चरित्र २००.००. सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ५००.०० मंगल माला (सचित्र) २०.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग १) ५००.०० सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र ४२५.०० मंगलम्
चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र
२५.०० श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.०० भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) . २५.०० श्री सर्वतोभद्र तिजय पहुत्त यंत्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १०.०० श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.००
० ० ०००
० ०
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
हम सिर्फ शुद्ध स्वर्ण-रजत के आभूषण एवं मनोहारी बरतन ही नहीं बेचते, किन्तु हम देते । भी हैं, जीवन को अलंकृत करने वाले मोती से उज्वल एवं हीरे से चमकदार शुद्ध विचार ।
Eआत्मा की आवाज राजा मेघरथ, (भगवान शान्तिनाथ पूर्वभव में) ने एक शरणागत कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर के अंग-अंग काट कर दे दिये। निरीह मूक पशुओं का करुण क्रन्दन सुनकर नेमिकुमार का हृदय द्रवित हो उठा और वे विवाह के लिए सजे तोरण द्वार से बिना ब्याहे ही लौट गये। महान् तपस्वी धर्मरुचि अणगार ने, चीटियों का नाश न होने देने के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की। .. श्रेणिक पुत्र महामुनि मेतार्य ने, शरीर एवं मस्तक पर बंधे गीले चमड़े की असह्य प्राणान्तक वेदना सहते हुए शरीर त्याग दिया अपने निमित्त से होने वाली एक मुर्गे की हिंसा को टालने के लिए।
सोचिए, विचारिए, आप और हम उन्हीं आत्म-बलिदानी, दयावीरों, धर्मवीरों, करुणावतारों की सन्तान हैं, फिर आज क्यों हमारी आँखों के सामने हमारी मातृभूमि पर,
ऋषि मुनि-तपस्वियों की तपो भूमि पर
प्रतिदिन, हर सुबह लाखों, करोड़ों मासूम पंचेन्द्रिय प्राणियों की गर्दन काटी जाती है? उनका रक्त बहाकर भूमि को अपवित्र किया जाता है उन्हें तड़पा-तड़पा कर दिल दहलाने वाली करुण चीत्कारों को अनसुना कर उनके शरीर के रक्त-मांस का क्रूर व्यापार किया जाता है ??
मानव जाति की मित्र तुल्य, राष्ट्र की पशु सम्पदा पर क्रूर दानवीय अत्याचार हो रहे हैं और हम चुप हैं !! इन राक्षसी कृत्यों को चुपचाप देखते सहते जा रहे हैं ? आखिर क्यों? कहाँ सो गई हमारी करुणा? क्यों मूर्छित हो गई है हमारी धर्म-बुद्धि ?? क्यों काठमार गया है, हमारे अहिंसक पुरुषार्थ को?? उठिए ! संकल्प लीजिए ! अपने धर्म की, देश के गौरव की, मासूम पशु-पक्षियों की रक्षा कीजिए। उनकी हत्या, हिंसा रोकने के लिए राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक, गांधी के वीर पथ का अनुसरण कीजिए। जागिए ! जनता को जगाइए ! अहिंसा और करुणा की अनन्त शक्ति का चमत्कार पैदा कीजिए।
__ करोंड़ों, करोड़ों जनता की एक पुकार ।
पशुओं पर नहीं होने देंगे अत्याचार | देश में बढ़ती हिंसा, कत्लखाने, शराबखाने बंद हो । हर घर में खुशी हो, हर व्यक्ति को आनन्द हो ॥
महाविचारादीपप्पर
शाकाहार क्रान्ति के सूत्रधाररतनलाल सी. बाफना 'नयनतारा' : सुभाष चौक, जलगाँव : फोन : २३९०३, २५९०३, २७३२२, २७२६८
waterersonaroseroily
rary.ory
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ FINANIYA श्री सम्मेद शिखर महातीर्थ अधिष्टायक समकितधारी देव श्री भोमियाजी बाबा * सत्साहित्य के स्वाध्याय से जीवन में ज्ञान का प्रकाश और सम्यग् दर्शन की अनुभूति होती है। * ज्ञान एवं दर्शन की विशुद्धि से आत्मा परम आनन्द को प्राप्त करती है। * परमानन्द की प्राप्ति के लिए स्वाध्याय अमृत तुल्य है। -श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनि