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रंभा ने महाराज मणिरथ को सूचना दीमहाराज ! चिड़िया ने दाना चुग लिया है। अब तो जा में फंसी ही समझिए !...
वाह ! तुम्हारा भी जबाव नहीं।
रंभा ने कुटिल हँसी-हँसते हुए कहा| युवरानी ! महाराज आपको बहुत चाहते हैं, यदि आप उनके उपहार नहीं रखेंगी तो उनका दिल टूट जायेगा। महाराज का मन रख लो न..
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सती मदनरेखा
कुछ दिनों बाद फिर मणिरथ ने कुछ श्रृंगार प्रसाधन देकर रंभा को मदनरेखा के पास भेजा। रंभा नयी भेंट सामग्री लेकर आई तो मदनरेखा के मन में कुछ खटक गया। उसने उपेक्षा पूर्वक लौटाते हुए कहा
| मुझे इन सब वस्तुओं की जरूरत नहीं है। जिस स्त्री का पति परदेश में हो, उसे इन श्रृंगारों से क्या काम है, जा वापस ले जा! नहीं चाहिए मुझे....
चतुर मदनरेखा तुरंत रंभा की कुटिल हँसी का मतलब समझ गई। झुंझलाकर उसने डाँटा
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रंभा .. तुम हद से आगे बढ़ रही हो.. खबरदार !
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