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| मदनरेखा ने अपनी जीभ खींची। शील भ्रष्ट होने से तो मौत अच्छी।
Lum
आश्वस्त होने पर मदनरेखा ने विद्याधर से पूछा
भाई ! तुम कहाँ जा रहे थे
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सती मदनरेखा
विद्याधर घबरा गया। उसने मदनरेखा को रोका।
ना ! ना ! तुम जान मत दो! जैसा कहोगी वैसा करूँगा... तुम डरो मत...
तुम्हारा नाम क्या है ?
मेरा नाम मणिप्रभ विद्याधर है। मैं अपने पिता मुनिराज के दर्शन करने जा रहा था। बीच में तुम मिल गईं तो सोचा पहले तुम्हें अपने महलों में पहुँचा दूँ।
Dad's
ना ! ना ! शुभ काम में विघ्न मत डालो! मुझे भी तो अपने पिता श्री मुनिराज के दर्शन कराओ!
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अवश्य ! अवश्य ! चलो हम पहले मुनि दर्शन ही करेंगे।
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