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सती मदनरेखा मदनरेखा को लेकर विद्याधर सीधा मुनिराज की धर्मसभा में पहुंचा। मुनि मनोभावों को समझने वाले मनःज्ञानी थे। अपने पुत्र के मलिन गन्दे विचारों को समझते देर नहीं लगी। इसलिए उन्होने इसी विषय पर अपना उपदेश दिया
पर स्त्री पर बुटी दृष्टि डालने turket ओह ! मैं यह क्या अनर्थ करने
वाला उसी प्रकार नष्ट हो जाता। जा रहा था...?
है जैसे दीये की लो पर पतंगा।
रावण, कीचक, दुर्योधन की दुर्गति का यही तो कारण था.../
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मुनि का हृदयस्पर्शी उपदेश सुनकर मणिप्रभ विद्याधर की आँखे खुल गई।
बहन ! मुझे क्षमा कर देना, मैंने तो सिर्फ तुम्हें धरती पर गिरने से ही बचाया, परन्तु तुमने तो मुझे नरक में गिरने से लिया।
भाई! आपके पवित्र विचारों का मैं स्वागत
करती हूँ।
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तभी आकाश से एक देव विमान नीचे उतरा। उसमें से एक देव निकला, वह सीधा मदनरेखा के सामने आकर उसे नमस्कार करके बोलादेवी ! तुम महान हो, तुमने मेरा उद्धार कर दिया।
देव, ऐसा कुछ मत कहिए। तुम्हारे सदुपदेश के प्रभाव से ही मैं इस दिव्य देव । ऋद्धि का स्वामी बना हूँ। तुम मेरी उपकारी हो।
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