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________________ सती मदनरेखा कुछ देर बाद मदनरेखा को होश आया। उसने एक विद्याधर युवक को कामुक दृष्टि से अपनी ओर निहारते देखा तो काँप गई हे भगवान कैसी है मेरी तकदीर ... ! राजमहल छोड़कर) जंगल में भाग आई। नवजात शिशु को छोड़कर सरोवर पर गई तो हाथी ने उछाल दिया और अब यह अकेला युवक मेरी सुन्दरता पर गिद्ध दृष्टि डाल रहा है हे प्रभु ! कैसी है कर्मों की लीला !.. 000 AUTO TITULO THANp ILLAHABAZAALVETHYA RATANI विद्याधर यवक ने मस्कराकर मदनरेखा की तरफ देखा। मदनरेखा ने हिम्मत करके पूछा मदनरेखा पहले तो सहमी फिर तरंत सम्हल गई भाई! तुमने मेटी जीवन-रक्षा की है न? अब जीवन दान देकर जीवन लूटने की बात कर रहे हो? तो लो... शील-रक्षा के लिए मैं अपनी जान भी दिये देती हूँ भाई ! तुम कौन हो? कहाँ जा रहे हो? मुझे क्यों बचाया तुमने..? मर रही थी तो मरने देना था, न? सुन्दरी ! अमृत पीने के लिए होता है न कि मिट्टी में मिलने के लिए। तुम्हारा अद्भुत यौवन, अपूर्व सौन्दर्य जीवन का सुख भोगने के लिए है..... तुम मेरे महलों में आनन्दपूर्वक रहना। 19
SR No.002811
Book TitleMahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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