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________________ मणिरथ बोला नहीं, मैं तुम्हारे कक्ष में ही आना चाहता हूँ। भाई युद्ध में गया हुआ है। न? तुम उदास बैठी हो। इसलिए तुम्हारा मन बहलाने के लिए कुछ उपहार लाया हूँ.. दरवाजा खोलो..) सती मदनरेखा मदनरेखा सकपका गई। भीतर दरवाजे की साँकल बंद करके वह दूसरे दरवाजे से निकलकर अपनी सास के पास पहुंची और उसे सब बता दिया। चतुर माता पुत्र के दुर्भावों व बुरी आदतों से परिचित थी। उसने मणिरथ को आवाज लगाई। मणिस्थ ! तुम रास्ता भूल गये बेटा ! यह तुम्हारा महल नहीं, छोटे भाई का महल है... अपने महल में जाओ... 0000000000000000000 66oo000000SABoo. Doooooooo0000 माता की ललकार सुनते ही मणिरथ पर सौ-सौ घड़ा पानी गिर गया। वह मुँह छिपाये चुपचाप अपने महलों की तरफ लौट गया। इसी दौरान सीमा पार के शत्रुओं को विजय करके युगबाहू सकुशल राजधानी में लौट आया। मणिरथ का मन भीतर से मुझ गया था। परन्तु ऊपर से खुशियाँ दिखाते हुए उसने छोटे भाई का विजयोत्सव मनाया। युवराज युगबाहू चिरायु हो। JODHD00001 DODX NEW NDI 00000 ducation International 10 For Private Personal use only www.ainelibrary.org
SR No.002811
Book TitleMahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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