SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सती मदनरेखा भाई-भाई का मिलन और नमिराज की प्रव्रज्या युगबाहू देव ने सती मदनरेखा को मिथिला नगरी में साध्वी सुदर्शना जी के पास पहुँचा दिया। मदनरेखा का वैराग्य भावित हृदय देखकर साध्वी जी ने उसे दीक्षा की स्वीकृति देदी। तब पुत्र से बिना मिले ही साध्वी सुदर्शना जी के पास दीक्षा ग्रहण कर तप - जप ध्यान - स्वाध्याय में लीन रहने लगी । मिथिला के राजा पद्मरथ के राजभवन में नमिकुमार का पालन-पोषण होने लगा । युवा होने पर वह सभी कलाओं में प्रवीण बन गया। उसके पराक्रम और राजनीति कौशल से बडे-बडे राजा उसके आज्ञा अधीन हो गये । एकबार नमिराज का एक सुन्दर विशालकाय हाथी पागल होकर भागकर जंगल में चला गया। वह कज्जल गिरि सा सुन्दर शुभ लक्षणों वाला हाथी नमिराज को अत्यन्त प्यारा था। नमिराज की सेना ने हाथी को पकड़ने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु हाथी पकड़ में नहीं आया। वह पड़ोस के राज्य सुदर्शन पुर के जंगलों में घुस गया। सुदर्शन पुर में युगबाहू के बड़े पुत्र चन्द्रयश का राज्य था । प्रजा ने राजा चन्द्रयश से पुकार की एक विशाल काय गजराज हमारी फसलों को तहस नहस कर उत्पात मचा रहा है। हमारी रक्षा कीजिये । चन्द्रश भी बड़ा वीर और रणनीति कुशल था। उसने अपने कौशल से उस हाथी को पकड़ लिया और लाकर अपनी गजशाला में बांध लिया। नमिराज के गुप्तचरों को पता चला कि हमारा हाथी सुदर्शन पुर के राजा की गजशाला में पहुँच गया है। तो उन्होंने महाराज नमि को सूचना दी। नमिराज ने चन्द्रयश के पास दूत भेज-आप हमारे हाथी को वापस कर दीजिए । चन्द्रयश ने करारा उत्तर दिया, यह हाथी किसका है, हमें नही पता, परन्तु इसने हमारी प्रजा को कष्ट दिया है, फसलों को नष्ट किया है इसलिए हमारा अपराधी है। अपराधी को हम नहीं छोड़ सकते। दूतों के सन्देश व बातचीत से समस्या नहीं सुलझी तो नमिराज ने सुदर्शन पुर पर आक्रमण कर दिया। नगर को चारों ओर से घेर लिया। कई दिन तक युद्ध होता रहा, मनुष्यों का खून बहता रहा, परन्तु नमिराज की सेना सुदर्शनपुर के द्वार तोड़कर नगर में नहीं घुस सकी। नमिराज बहुत चिंतित था । रात में नमिराज ने अपने सेनापतियों को बुलाकर आदेश दिया- कल किसी भी प्रकार सुदर्शनपुर के दुर्ग तोडकर हमें नगर में प्रवेश करना ही है। प्रातः काल जैसे ही युद्ध की भेरी बजी हाथियों व योद्धाओं की सेना ने सुदर्शन पुर पर चारों तरफ से प्रचण्ड आक्रमण कर दिया। तभी अचानक दो श्वेत वस्त्र धारिणी साध्वियाँ नमिराज की युद्ध छावनी की तरफ प्रविष्ट हुई। प्रहरियों ने साध्वियों को द्वार पर रोका, तो साध्वी सुव्रता ने प्रहरी से कहा, अपने महाराज को सूचित करो, दो श्रमणियाँ उनसे मिलना चाहती है। युद्ध भूमि में श्रमणियों के आगमन की सूचना पाकर नमिराज विस्मित हो गया। फिर भी वह श्रमणियों के पास आया। नमस्कार कर उसने कहा- आर्याजी, आप तो जानती है, युद्धभूमि में श्रमण श्रमणियों को नहीं आना चाहिए, फिर आपने ऐसा क्यों किया ? साध्वी सुव्रता बोली- राजन् ! मैं जानती हूँ युद्धभूमि में श्रमण का जाना निषिद्ध है, परन्तु कभी-कभी भयंकर हिंसा को रोकने के लिए अपवाद मार्ग पर भी चलना पड़ता है, आपसे मिलने व उपदेश देने को यही उपयुक्त अवसर समझकर हमें यहां आना पड़ा है। - नमिराज - अभी मैं युद्ध की तैयारी में यह बात करने का अवसर नहीं है, नही धर्म उपदेश सुनने का अवसर है कृपाकर संक्षेप में ही आप अपनी बात कहकर वापस पधार जाइए ! साध्वी सुव्रता- राजन् ! मैं आपसे एक ही बात पूछने आई हूँ, कि यह भयंकर नरसंहार किसलिए कर रहे हैं ? Jain Education International For Privar Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002811
Book TitleMahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy