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सती मदनरेखा
राजा मणिरथ रातभर सो नहीं सका। वासना का भूत उसके सिर पर सवार हो गया। वह रातभर मदनरेखा को अपने चंगुल में फँसाने का जाल बुनता रहा। आखिर उसको एक चाल सूझी।
प्रातः मणिरथ उदास सा मुख बनाकर राजसभा में गया, छोटा भाई युवराज युगबाहू चरण स्पर्श करने आया। उदास देखकर पूछने लगा
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भैया ! क्या बात है? आज आप बहुत चिंतित लगते हैं।
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אואט טאטאט
कल सुबह से ही इस योजना पर अमल करूँगा।
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Arun
मणिरथ ने अपना जाल फेंका।
ကြည့်ဆိုသည်
नहीं ! कुछ नहीं ऐसे ही बिन बुलाए कुछ विपत्तियाँ आ जाती हैं! तू फिक्र मत कर भाई ! सब ठीक हो जायेगा।
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