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सती मदनरेखा
चौकीदार ने जाकर युगबाहू को जगाया।तुरत-फुरत युगबाहू कपड़े । बदलकर चलने को हुआ, तभी चौकीदार ने रोक दिया
रामसिंह ! मैं हूँ महाराज मणिरथ। युगबाहू से मुझे बहुत आवश्यक काम है.. अभी इसी वक्त मिलना है...
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क्षमा करें महाराज ! इस वक्त कोई भी भीतर नहीं जा सकता... आप यहीं रुकिये। मैं युवराज को सूचित करता हूँ।
RAVयुवराज ! क्षमा करे ! मुझे PAT कुछ दाल में काला लग रहा
है। महाराज अकेले हैं, हाथ में नंगी तलवार हैं, ऐसे में आपका उनसे मिलना उचित A नहीं लगता।
मदनरेखा ने सुना तो वह एक बार कंपकपा उठी। उसे पिछली घटनाएं एक-एककर याद आने लगीं। उसने युगबाहू रोकना चाहा
मदन ! तुम्हें शर्म आनी चाहिये। रुकिये स्वामी ! अभी आप मत जाइए।
तुम मेरे पवित्र भाई पर इतना जेठ जी पर वासना का भूत सवार है,
बड़ा लांछन लगा रही हो? वे कुछ भी अनर्थ कर सकते हैं।
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