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सती मदनरेखा तब तक राजकुमार चन्द्रयश, मंत्री, सेनापति आदि लोग एकत्र हो गए और युवराज युगबाहू के अन्तिम संस्कार की क्रिया में जुट गये। मदनरेखा ने सोचा
यह अवसर है मैं अब जंगल में भाग (जाऊं ताकि जेठ जी के क्रूर शिकारी हाथों
से अपने शील धर्म की रक्षा कर सकूँ।
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मदनरेखा महलों के पिछले दरवाजे से मंगलसांय-सांय करते बीहड़ जंगलों में मदनरेखा की ओर निकल पड़ी।
अकेली कई दिनों तक भटकती रही। TTAMAN अब तो मुझे अपनी नही, होनी वाली सन्तान की
सोच है।
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