Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 10
________________ सती मदनरेखा रंभा ने इसे भी मदनरेखा के प्यार की झिड़की अपने शील धर्म पर कीचड़ उछलते देखकर समझी। उसने हँसकर कहा मदनरेखा का क्रोध भड़क उठा।। युवरानी ! प्यार में तुम्हारा क्रोध भी मीठा लगता है न? सचमुच तुम्हारे नाज़-नखरों ने महाराज का मन मोह लिया है। बेशर्म दासी ! ठहर अभी तुझे बताती हूँ कि मेरा क्रोध कैसा लगता है.. ALSI O उसने दासी की चोटी पकड़कर नंगी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी। रंभा गिड़गिड़ाने लगी.. OOANT युवरानी, मुझे माफ कर दो! मैंने तो महाराज के कहने से यह सब किया है.. दुष्ट बेशर्म ! कीचड़ में खुद कूदती है और छींटे महाराज पर उछालती है, महारान मेरे पिता तुल्य हैं... झूठमूठ ही उनको बदनाम कर रही है, खबरदार, आगे से कभी ऐसी हरकत की तो... For Private Personal use orbPage Navigation
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