Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 8
________________ सती मदनरेखा मणिरथ ने जवाहरात और श्रृंगार के सामान से सजे हुऐ थाल की ओर इशारा करके रंभा से कहा रंभा ! जाओ, पहले यह भेंट मदनरेखा को हमारी तरफ से दो.... D 100000+ रंभा थाल लेकर मदनरेखा के महल में आई। युवरानी को दासी रंभा का प्रणाम ! महाराज आज आप पर बड़े प्रसन्न हैं। यह उपहार महाराज की ओर से... Jain Education International ओह ! इतने मूल्यवान आभूषण ! इतने सुन्दर परिधान और यह श्रृंगार का साज सामान... अभी क्या जरूरत थी इनकी...? leaf DOODGE baaaaai युवरानी ! यह तो महाराज की प्रसन्नता का प्रसाद है। रख लो, महाराज आप पर बड़े कृपालु हैं ..... मदनरेखा महाराज मणिरथ का पिता के समान आदर करती थी। इसलिए उसने उनका उपहार भी बड़े आदर के साथ स्वीकार लिया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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