Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 16
________________ सती मदनरेखा युगबाहू के शरीर से खून के फव्वारे छूटने लगे। वह जमीन पर गिरकर तड़फने लगा। मदनरेखा ने उसका सिर अपनी गोद में लिया और धीरज बँधाने लगी। उद やす 'स्वामी ! अब आपके प्रस्थान का समय है, मन को शांत रखिए। भाई पर क्रोध मत कीजिए न मुझ पर मोह रखिए। राज्य, पत्त्नी, पुत्र, किसी की चिंता मत कीजिए। णमोकार मंत्र जपिए, उसी से आपको सद्गति मिलेगी, पर लोक में सुख मिलेगा Saldind {{a[11 युगबाहू के शरीर से लगातार खून बह रहा था और मदनरेखा उसके मन को शान्त, द्वेष रहित, मोह मुक्त बनाने का प्रयत्न कर रही थी। अन्तिम आराधना सुनकर युगबाहू का क्रोध शान्त हो गया। अचानक एक हिचकी आई। युगबाहू ने आँखें मूँद लीं। मदनरेखा दो पल के लिए फूट-फूटकर रोने लगी। Jain Education International कुछ देर संभाला। WOME रोने-बिलखने के बाद, मदनरेखा ने स्वयं को मेरा पुत्र चन्द्रयश अभी छोटा है, जेठ जी के सिर पर कामवासना का भूत सवार है। भाई की हत्या भी कर चुके हैं, अब मेरे शील पर भी आक्रमण कर सकते हैं। अतः मुझे, पुत्र और राज्य की चिंता न करके अपने शील की रक्षा करनी चाहिए। 14 For Private & Personal Use Only 40003 www.jainelibrary.org.

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