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रावण अपने मंत्रियों के साथ मंत्रणा कर रहा है।
सब देशों के राजाओं के पास
दूत भेजकर संदेश पहुंचाओ कि वे अपनी सेना लेकर तुरंत यहां आए ।
वायुकुमार जैसे ही तैयार होकर युद्ध के लिए चला कि सामने दुखी अंजना खड़ी दिखाई दी।
हे पापिनी ! इस शुभ मुहूर्त में अपना चेहरा दिखाकर अशुभ करने आ गयी। हट जा.. मर कहीं....
और अंजना को यहां लाना भी उचित न होगा। अस्तु, गुप्त रीति से वहां चलें और प्रातः होने से पहले लौट आएं।
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राजा प्राह्लाद के पास भी रावण का दूत संदेश लेकर आया। राजा प्राह्लाद तुरंत सेना लेकर जाने को तैयार हुआ ।
हां! यही ठीक है।
यह क्या पिताजी मेरे होते आप युद्ध करने जाएंगे। मैं क्षत्रिय पुत्र हूँ। अब मैं युद्ध करने जाऊंगा।
वायु कुमार ने अपने मित्र प्रहस्त के साथ लंकापुरी के लिए प्रस्थान किया। चलते-चलते मान सरोवर तट पर संध्या हो गयी। दोनो वहीं ठहर गए। वहां वायुकुमार ने चकवा चकवी को वियोग से तड़पते देखा ।
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मित्र ! जिस तरह चकवी अपने प्रिय के लिए वियोग में जल रही है. मेरी अंजना भी वैसे ही दुखी होगी मैने उसके साथ अन्याय किया है मैं अभी ही उससे मिलने जाऊंगा।
हे पुत्र ! तेरी जय हो !
मैं सच कह रहा हूँ, अंजना तुम्हारे दुख के दिन दूर हुए। तुम्हारे प्राणनाथ, तुम्हारे पास स्वंय आए हैं।
कुमार! तुम युद्ध के लिए पिता की आज्ञा लेकर निकले हो। अंजना के लिए वापस जाना, बड़ी लज्जा की बात होगी।
वे दोनो आकाश मार्ग से चलकर अंजना के महल पर उतर गए। वायुकुमार बाहर खड़ा रहा और प्रहस्त अंजना को वायुकुमार के आने की सूचना देने गया।
क्यों सखि वसंतमाला ! तेरे पति की बात का विश्वास कर लूं।
महाबली हनुमान