Book Title: Mahabali Hanuman
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 15
________________ उधर पवनकुमार ने रावण की ओर से राजा वरुण से युद्ध कर विजय प्राप्त की। रावण ने प्रसन्न होकर उसे बहुत-सा धन देकर विदा किया। किन्तु वापस अपने नगर आने पर उसे महल में अंजना न मिली। सारा हाल सुनकर वह दुख के महासागर में डूब गया। हि मित्र प्रहस्त अंजना के बिना मुझे यह संसार असार लगता है। उसके बिना मैं नही जी सकता। शोक न करो मित्र इस पृथ्वी पर जहां भी अंजना होगी, हम उसे ढूंढ निकालेंगे। | पवनकुमार के वन में चले जाने पर राजा प्रहलाद ने विद्याधरों को उसे खोजने भेजा। एक विद्याधर ने जाकर राजा प्रतिसूर्य को भी इसकी सूचना दी। यह सुनकर अंजना विलाप करने लगी। विलाप न कर पुत्री । मैं स्वयं वायुकुमार को खोजने जा रहा हूँ। मेरे साथ तेरे श्वसुर राजा प्राहह्लाद भी आने वाले हैं। जैन चित्रकथा वायुकुमार के कहने पर भी स्वामिभक्त हाथी वहां से नहीं गया। उधर राजा प्रतिसूर्य और राजा प्राहह्लाद विमान पर खोजते खोजते उसी वन में आए और हाथी को पहचान कर नीचे उतरे उन्हें | पवनकुमार मिल गया । राजा प्रतिसूर्य से अंजना और अपने पुत्र का कुशल समाचार सुनकर, अब तुम्हारा दुख दूर हुआ। अब तुम हनूरुह द्वीप को चलो। वायुकुमार अम्बर गोचर हाथी पर बैठकर अंजना को खोजने निकल पड़ा। भूतरवर वन में पहुंचकर उसने हाथी को छोड़ दिया और स्वयं पैदल वन कंदराओं में अंजना को खोजने निकल पड़ा। w2 Ve हे गजराज ! अब तुम मुक्त होकर वन में विचरण करो। еме हनूरुह द्वीप में वे सब सुख से रहने लगे। समय बीतता गया। हनूमान जी युवा हो गए। उन्होने अनेक विद्याएं सीख ली। उधर वरुण ने फिर से रावण पर आक्रमण किया। रावण ने फिर से मदद के लिए वायुकुमार के पास दूत भेजा। वायुकुमार चलने को हुआ तो हनूमान जी ने रोक लिया। पुत्र के होते हुए, पिता युद्ध के लिए जाए, यह कहां का न्याय है। आपको मेरी शक्ति पर भरोसा होना चाहिए। ठीक है बेटा। मेरा आशीर्वाद है। विजयी भव। 13

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