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मुनिराज अपनी बात कहकर गुफा से चले गए। कुछ ही देर में गुफा के द्वार पर एक भयंकर सिंह आया। अंजना और वसंतमाला सिंह की गर्जना सुन डर गयी। उसी गुफा में मणिचूल देव और उसकी पत्नी रत्नचूड़ा रहते थे। पत्नी के कहने पर उसे देव ने सिंह को भगाकर गुफा की दोनो स्त्रियों की रक्षा की।
अब सुनो कि अंजना को क्यों कष्ट हुआ। पूर्व जन्म में इस अंजना ने पटरानी के अभिमान में सौतन पर क्रोध कर देवधिदेव श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा मंदिर से बाहर एक बावड़ी में छिपा दी। यह काम करते देख एक आर्यिका ने समझाया कि तुम यह निन्दनीय कार्य मत करो। तब उसने सम्यक् धारण किया और श्राविका धर्म स्वीकार किया। श्री जिनेन्द्र को बाईस घड़ी पानी में रखा था, इसलिए तुझे बाईस घड़ी वियोग में बिताने पड़े। तेरा पति थोड़े दिनों में आकर मिलेगा। तेरा पुत्र महान कल्याण करने वाला होगा।
वसंतमाला ने सारी कहानी सुना दी।
कुछ समय बाद अंजना ने पुत्र को जन्म दिया। उसी समय आकाश मार्ग से हनूरुह द्वीप राजा प्रतिसूर्य अपनी पत्नी के साथ आकाश मार्ग से निकला। दो स्त्रियों और बच्चे को अकेला देख, वह विमान वहां ले आया।
हे शुभानने ! ये महिला कौन है ? किसकी पुत्री है? वन में क्यों रहती है?
मैं राजा प्रतिसूर्य हूँ। अंजना मेरी भानजी है। इसे मैने बहुत समय से देखा नही था। अब हम सब हनूरुह द्वीप को चलें। वहीं बालक का जन्मोत्सव होगा।
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जैन चित्रकथा