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तभी वहां वायुकुमार आ गए। अंजना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने झुककर पति का चरण स्पर्श किया।
चलो प्रिय ! इन्हे अकेला छोड़.. हम अपनी दुनिया
में चलें।
प्रात:काल होने से पहले वायुकुमार और प्रहस्त चलने को तैयार हुए।
मैं छिपकर आया हूँ हे प्रिय ! यदि मुझे गर्भ
अंजना ।फिर उन्हें कैसे रह गया तो? लोग तो यही
कह सकता हूँ। चिन्ता जानते हैं कि आप मुझसे
न करो। मैं शीघ्र नाराज हैं। इसलिए अपने यहां आने की बात माता-पिता से
लौटूंगा। फिर भी तुम कहते जाना।
| मेरी ये अंगूठी रख लो।
और वे दोनो आकाश मार्ग से चले गए।
कुछ समय बाद अंजना के गर्भ चिन्ह प्रकट हुए। रानी केतुमती जंगल में बेसहारा भटकती हुई अंजना और वसंतमाला राजा महेन्द्र के ने अंजना पर कुलच्छिनी होने के लांछन लगाए और उसकी || महल में पहुंची। वहां द्वारपाल ने उन्हें रोक दिया और वह स्वयं राजा महेन्द्र एक न सुनी। अंगूठी तक पर विश्वास न किया। उन्हे देश | के पास गया। निकाला दे दिया।
निश्चय ही उसके गर्भ महाराज! आपकी पुत्री अंजना) किसी का पाप होगा, तभी
आई है। किन्तु वह गर्भवती है और अंजना और वसंतमाला
ससुराल से निकाली गयी है।
सतायी हुई है। संभवत: ससुराल उसे ले जाकर घनघोर वन दोनो को पकड़कर ले
वालों ने उसकी यह दशा की है। में छोड़ आओ। जाओ और महेन्द्रनगर के जंगलों में छोड़ देना।
जैन चित्रकथा