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हनूमान जी जब रावण के पास पहुँचे तो उसने उनके गुणों और शक्ति की बहुत प्रशंसा की। इसके बाद वे वरूण की सेना से युद्ध करने गए। उन्होंने वरूण की सेना को ध्वस्त कर वरूण के सौ पुत्रों को बंदी बना लिया। रावण विजयी हुआ। वह रावण और हनूमान जी से विनय करने लगा।
हनूमान जी ने वरूण के पुत्रों को क्षमा करके छोड़ दिया।
हे कुमार ! आप जैसा वीर हे हनूमान ! तुम्हारे पुरुष नहीं है। यदि आप मेरी सम्मान स्वरूप मैं भी पुत्री सत्यवती से विवाह करना अपनी भानजी स्वीकार करें तो मैं कृतार्थ
अनंगसुमा से तुम्हारा हो जाऊंगा।
विवाह करना चाहता हूँ। उसे स्वीकारो।
हे रावण ! मेरा अपराध क्षमा करो।
तुम इस लोक में महाप्रतापी हो। तुम्हे प्रणाम करता हूँ। हे हनूमान जी!
मैरे पुत्रों को बंधन मुक्त करें।
इस प्रकार विवाह के पश्चात हनूमान जी | | कुण्डलपुर राज्य में सुख से रहने लगे। इसके बाद किहकंधापुरी के राजा सुग्रीव | की पुत्री से भी विवाह किया।
खरदूषण का पुत्र और रावण का भानजा उसी समय राम, लक्ष्मण और सीता जी दंडक वन शंबूक सूर्यहास खड्ग साधने के लिए दंडक में पिता की आज्ञानुसार वनवास कर रहे थे। एक वन में बांस के एक बीड़े में, ब्रह्मचर्य व्रत दिन लक्ष्मण उधर आए जहां शंबूक तप कर रहा धारण कर बैठा था। उसकी माता चंद्रनखा| था। उन्होंने खड्ग देखा तो उसे उठा लिया और रोज उसे वहीं भोजन दे आती थी। बारह |
परीक्षण करने के लिए उसी बांस पर चलाया जिस वर्ष व्यतीत होने पर खड्ग प्रकट हुआ।
पर शंबूक बैठा था । खड्ग के वार से बांस के साथ यदि सात दिनो में इस खड्ग को न
शंबूक का सिर भी कट गया। लिया तो यह किसी और का हो जायगा
और साधने वाले की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन मेरे पुत्र का व्रत पूरा होने में तीन दिन ही तो शेष हैं ... उसेक बाद खड्ग उसका होजायगा।
महाबली हनूमान