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पत्र १०
७५ दह तिग, पण अधिगम साचवतां, एकमना धुरि थइये रे...
दह = दश, तिग = त्रिक, पण = पाँच | पहले इन शब्दों का अर्थ जान लें। दश त्रिक और पाँच अधिगम को समझाता हूँ। ___ पाँच अधिगम : पाँच नियमों का पालन करने का होता है, मंदिर में जाने के लिए | पहला नियम : पूजन के सामान के अलावा कोई भी सजीव फल वगैरह मंदिर में नहीं ले जाना चाहिए। दूसरा नियम : अचित्त [जीवत्वरहित] वस्तु [पूजन के लिए] ले जानी चाहिए। तीसरा नियम : मन को परमात्मा में एकाग्र करना चाहिए। चौथा नियम : कोई भी शस्त्र साथ में नहीं रखना चाहिए। [अथवा उत्तरासंग का उपयोग] पाँचवा नियम : मंदिर में प्रवेश करते ही मस्तक पर अंजलि करनी चाहिए। ___ दश त्रिक : दश क्रियायें ऐसी हैं, जो तीन-तीन बार करने की होती हैं। यहाँ पर मात्र उन क्रियाओं के नाम ही बताता हूँ| इन क्रियाओं को विस्तार से समझने के लिए 'चैत्यवंदन भाष्य' का अध्ययन करना होगा।
१. निसीही, २. प्रदक्षिणा, ३. प्रणाम, ४. पूजा, ५. अवस्थाचिंतन, ६. प्रमार्जन, ७. दिशात्याग, ८. मुद्रा, ९. आलंबन, १०. प्रणिधान.
चेतन, परमात्मपूजन विधिपूर्वक करना है, तो इन बातों का पालन करना ही होगा। और, दूसरी बात है मन को एकाग्र करने की। दुनिया के सभी विचारों को बाहर छोड़कर, एक मात्र परमात्मा के ही विचारों में मन लीन होना चाहिए । 'निसीही' बोलने का यही तो तात्पर्य है। मंदिर में संसार की क्रियायें नहीं करने की हैं, संसार की बातें नहीं करने की हैं और संसार के विचार भी नहीं करने के हैं।
ललाट पर जिनाज्ञा के स्वीकार-रूप तिलक कर, दुपट्टे के अंचल से मुँह [और नासिका] बाँधकर, हाथ में पूजन-सामान का थाल लेकर परमात्मा के गर्भगृह में प्रवेश करना चाहिए और परमात्मा की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए |
अंगपूजा और अग्रपूजा पहले बताते हैंकुसुम, अक्षत, वरवास, सुगंधि, धूप दीप मन साखी रे अंगपूजा पण भेद सुणी इम, गुरुमुख आगमभाखी रे...
अंगपूजा के पाँच प्रकार [पण भेद] गुरुजनों ने बताये हैं कि जो आगमग्रन्थों में कहे गये हैं।
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