Book Title: Magar Sacha Kaun Batave
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २३ २०६ बार मुझे देखने पर आप मेरा त्याग नहीं करेंगे। मेरी यही अभिलाषा है कि आप मुझे अपने पास रखें। मोहदशा धरी भावना रे, चित्त लहे तत्वविचार वीतरागता आदरी रे, प्राणनाथ! निरधार... प्रभो! क्षमा करना, मोहदशा में मैंने आपको क्या-क्या कह दिया...? मेरा मन जब तात्त्विक विचार करता है, तब स्पष्ट हो गया कि आप वीतराग बन गये हैं...मेरे प्राणनाथ! निश्चित ही आप वीतराग बने हैं। आप में राग का अंश भी नहीं रहा है। आपका वापस लौटना और मेरा स्वीकार करना अब संभव नहीं है। अब तो मुझे ही आपके चरणों में आना होगा। सेवक पण ते आदरे रे, तो रहे सेवक-माम... आशय माथे चालिये रे, एही ज रूडं काम... ___ 'हे नाथ! मैं आपकी सेविका हूँ। मुझे भी आपका ही मार्ग लेना होगा। आप मेरे मालिक हो, आपकी आज्ञा के अनुसार मुझे चलना चाहिए, तो ही सेवक की लाज [माम] रहेगी। आपके प्रति मेरे हृदय में अपूर्व प्रीति है, मुझे प्रीति अखंड रखना है, तो मुझे आपके आशय [आज्ञा] के साथ ही चलना होगा। वही मेरे लिए अच्छा-श्रेष्ठ कार्य होगा। चेतन, श्री आनन्दघनजी ने 'आशय साथे चालिये रे' यह बात बहुत ही मार्मिक कही है। श्री ऋषभदेव की स्तवना में जो कहा है - 'रंजन धातुमिलाप' वही बात खोल कर यहाँ कह दी है। परमात्मा से प्रीति करना है, प्रीति दृढ़ करना है, तो परमात्मा के आशय [आज्ञा] को समझना ही होगा और आशय के अनुसार चलना होगा। वैसे संसार में भी किसी से प्रीति बाँधना है, तो उसके आशय को समझ कर चलना होगा। साधुजीवन में भी शिष्य को गुरु का आशय समझकर चलना होता है। कभी गुरु को शिष्य का आशय भी देखना पड़ता है। आशय को नहीं समझनेवाले लोग प्रेम निभा नहीं सकते हैं। राजीमती ने श्री नेमिनाथ का आशय समझा था। 'तुझे यदि मेरे साथ प्रीति निभाना है, तो संसार का त्याग कर साध्वी बन जा| मोक्षमार्ग की आराधना For Private And Personal Use Only

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