Book Title: Magar Sacha Kaun Batave
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 240
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २५ २२९ जीवमात्र के जीवन में सहायक [आलंबन-साधन] जो मन-वचन-काया के योग हैं, उनका जो त्याग करते हैं और परपरिणति को जो भगाते हैं, उनके भीतर आनन्दघनस्वरूप आत्मा [प्रभु] जाग्रत हो जाती है, यानी स्वभावदशा प्राप्त हो जाती है। परंतु आलंबनों का त्याग और परपरिणति का नाश, क्षायिक [अक्षय] दर्शन, ज्ञान और वैराग्य [चारित्र] से होता है! अथवा बाह्य आलंबन छूट जाने पर और परपरिणति नष्ट हो जाने पर आत्मा क्षायिक दर्शन-ज्ञान और चारित्र में जाग्रत बन जाती है। यानी अनंत काल क्षायिक गुणों में रमणता करती है। योगीराज आनन्दघनजी, परमात्मा महावीरदेव के पास ऐसे वीर्य की याचना करते हैं कि जिससे वे वैषयिक सुखभोगों की वासना पर विजय प्राप्त कर सकें, और आत्मोपयोग में लीन बनकर अयोगी बन सकें । अयोगी आत्मा ही अनंतकाल स्वरूप में रमणता कर सकती है। यह आत्मस्वरूप की रमणता, योगीराज का अंतिम ध्येय है। ___ अंतिम तीर्थंकर के पास कविराज ने अंतिम ध्येय की याचना कर ली है। बहुत ही नम्रता से उन्होंने याचना की है। 'वीरजीने चरणे लागुं वीरपणुं ते मागुं रे....' __ प्रभु के चरणों में गिरकर उन्होंने याचना की है। वीरता की याचना की है। चूँकि कायरता से कभी कार्यसिद्धि नहीं होती है। कायर मनुष्य शास्त्रज्ञानी हो सकता है, परंतु ज्ञान के अनुरूप पुरुषार्थ नहीं कर सकता है। पुरुषार्थ के लिये वीरता चाहिये, वीर्योल्लास चाहिये। शास्त्रज्ञानी तो हम अनंत जन्मों में अनन्त बार बने हैं-ऐसा पूर्णज्ञानी का कथन है, परंतु हम कायर थे, वीर्यहीन थे, इसी वजह से कामवासनाओं पर विजय नहीं पा सके, मन-वचन-काया के योगों को स्थिर नहीं कर पाये और आत्मस्वरूप में रमणता नहीं कर पाये। ___ हमारे में कमी है वीर्य की, शक्ति की। भगवान महावीरदेव के चरणों में गिर कर, गदगद हृदय से हम भी प्रार्थना करें, याचना करें कि 'हे करुणासिन्धु, आप शक्ति के भंडार हैं.... अनंत शक्ति है आप के पास, मुझे उस में से कुछ अंश देने की कृपा करो मेरे नाथ! आपके इस उपकार को मैं कभी नहीं भूलूँगा।' For Private And Personal Use Only

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