Book Title: Magar Sacha Kaun Batave
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ पत्र २१ अंध शकट जो नजरे न देखे, तो शुं कीजे शकटे? अन्ध मनुष्य के सामने बैलगाड़ी [शकट] खड़ी है, फिर भी वह नहीं देख सकता है तो क्या बैलगाड़ी नहीं हैं? अन्धा देखता नहीं है, इतने मात्र से बैलगाड़ी के अस्तित्व का निषेध नहीं किया जा सकता है। चार्वाक, आत्मा को नहीं देख सकता है। दुराग्रह-कदाग्रह का अन्धापन है उसको। श्री आनन्दघनजी परमात्मा को कहते हैंएक अनेक वादीमत-विभ्रम संकट पड़ियो न लहे, चित्त-समाधि, ते माटे पूर्छ तुम विण तत्त्व कोई न कहे.... हे भगवंत, इस प्रकार [एम] अनेक एकान्तवादियों के मतों से उत्पन्न मतिभ्रमणारूप संकट में फँसा हुआ मुमुक्षु चित्तसमाधि नहीं पाता है। इसलिए आप से पूछता हूँ। आप के बिना सही आत्मस्वरूप कोई नहीं कहता है। यहाँ श्री चिदानन्दजी याद आते हैं। उन्होंने कहा हैमारग साचा कौन बतावे? जाकुं जाय के पूछिये वे तो अपनी अपनी गावे! इस दुनिया में मोक्ष का सच्चा मार्ग कौन बताता है? जिस-जिस को रास्ता पूछते हैं, वे सभी अपनी-अपनी बात बताते हैं। इससे मुमुक्षु आत्मा उलझन में फँस जाती है। उसके मन में समता-समाधि नहीं रहती है। मुमुक्षु की प्रार्थना सुनकर भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी कहते हैंवलतु जगगुरु एणी परे भाखे, पक्षपात सब छंडी, राग-द्वेष-मोहपख वर्जित आतमशु रढ़ मंडी.... आतमध्यान करे जे कोऊ सो फिर इण में नावे.... सभी प्रकार का पक्षपात जिन्होंने छोड़ दिये [छंडी] हैं और जो राग-द्वेष एवं मोह के पक्ष से मुक्त [वर्जित] हैं-वैसे जगद्गुरु मुनिसुव्रतस्वामी ने इस प्रकार [एणी परे] कहा : रागरहित, द्वेषरहित मोहरहित और पक्षरहित बनकर, एक मात्र आत्मा में दृढ़तापूर्वक [रढ़] लीन बनो! जो कोई साधक मनुष्य आत्मध्यान करेगा, वह पुनः मतिभ्रमणा में इण में फँसेगा नहीं। For Private And Personal Use Only

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