Book Title: Magar Sacha Kaun Batave
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 194
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पत्र २२ षड् दरिसण जिनअंग भणीजे, न्यास षड़ग जो साधे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमि जिनवरना चरण-उपासक षड्दरिसन आराधे रे..... जिन सुरपादपपाय वखाणुं सांख्य जोग दोय भेदे रे, आतमसत्ता विवरण करतां लहो दुग अंग अखेदे रे ..... भेद - अभेद सौगत मीमांसक जिनवर दोय करी भारी रे, लोकालोक अवलंबन भजीये गुरुगमथी अवधारी रे..... लोकायतिक कुख जिनवरनी अंश विचारी जो कीजे रे, तत्त्वविचार सुधारसधारा गुरुगम विण किम पीजे रे..... जैन जिनेश्वर उत्तम अंग अंतरंग बहिरंगे रे, अक्षरन्यासधरा आराधक आराधे धरी संगे रे..... जिनवरमां सघलां दरिसण छे, दरिसणमां जिनवर - भजना रे, सागरमा सघली तटिनी सही, तटिनीमां सागर भजना रे..... जिनस्वरूप थई जिन आराधे ते सही जिनवर होवे रे, १८३ भृंगी इलिकाने चटकावे, ते भृंगी जग जोवे रे.... चूर्णी भाष्य सूत्र निर्युक्ति वृत्ति परंपर-अनुभव रे, समय पुरुषनां अंग कह्यां ए, जे छेदे ते दुर्भव रे..... मुद्रा बीज धारणा अक्षर न्यास अरथ विनियोग रे, जे ध्यावे ते नवि वंचिजे, क्रिया- अवंचक भोगे रे..... श्रुत-अनुसार विचारी बोलुं सुगुरु तथाविध न मिले रे, किरिया करी नवि साधी शकिये, ए विषवाद चित्त सवले रे.... १० माटे उभो कर जोडी जिनवर आगल कहीये रे, समय चरण सेवा शुद्ध देखो जेम आनन्दघन लहीये रे..... ११ For Private And Personal Use Only ७ चेतन, प्राचीन भारत में आत्मा और मोक्ष के विषय में भिन्न-भिन्न विचारधारायें प्रचलित थी। उन सभी विचारधाराओं को ६ विभागों में विभाजित की गई, और 'षड्-दर्शन' के नाम से प्रसिद्ध हुई । ये ६ विभाग दो प्रकार से किये गये हैं। पहला प्रकार १. सांख्य, २. योग, ३. नैयायिक, ४. वैशेषिक, ५. पूर्व मीमांसा, ६. उत्तर मीमांसा । इन छह दर्शनों का मूल है वेद । वेदों को लेकर

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