Book Title: Magar Sacha Kaun Batave
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ पत्र २३ मोहदशा धरी भावना रे, चित्त लहे तत्त्वविचार, वीतरागता आदरी रे, प्राणनाथ निरधार... मनरा. १४ सेवक पण ते आदरे रे, तो रहे सेवक माम, आशय साथे चालिये रे, एही ज रूडं काम... मनरा. १५ विविध योग धरी आदर्यो रे, नेमिनाथ भरतार, धारण पोषण तारणो रे, नवरस मुगताहार... मनरा. १६ कारणरूपी प्रभु भज्यो रे, गण्युं न काज-अकाज, कृपा करी मुझ दीजिये रे, आनन्दघन पदराज... मनरा. १७ चेतन, नेमिनाथ और राजीमती का प्रेम-संबंध, जैन इतिहास में सुवर्णाक्षरों से लिखा गया है। आठ-आठ जन्मों से इन दोनों का प्रेम-संबंध चला आ रहा था। नेमिकुमार की सगाई राजा उग्रसेन की पुत्री राजीमती के साथ हुई थी। शादी करने के लिये नेमिकुमार की बारात चली | बारात में हजारों यादव थे। यादव मांसाहारी थे! राजा उग्रसेन ने यादवों के भोजन के लिए सैकड़ों पशुओं को गाँव के बहार वाड़े में बाँध रखे थे! पशु करुण चित्कार कर रहे थे। जब बारात नगर के द्वार पर पहुँची, नेमिकुमार ने पशुओं का चित्कार सुना। उन्होंने रथ के सारथि को पूछा कि इतने सारे पशु क्यों इकट्ठे किये गये हैं। सारथि ने कारण बताया। नेमिकुमार का करुणापूर्ण हृदय द्रवित हो गया। 'मेरे निमित्त इतने हजारों जीवों की हिंसा होगी? नहीं, नहीं, मुझे शादी नहीं करनी है।' उन्होंने सारथि को रथ वापस मोड़ने की आज्ञा दी। बारात वापस लौट गई। यह समाचार राजीमती को मिलते हैं। राजीमती मूर्च्छित हो जाती है, मूर्छा दूर होने पर करुण कल्पांत करती है। ___ श्री आनन्दघनजी ने इस स्तवना को राजीमती की स्तवना बना दी है। यानी राजीमती नेमिकुमार को संबोधित करती हुई कहती हैअष्ट भवांतर वालही रे, तू मुझ आतमराम...मनरा व्हाला... __ 'मेरे मन के प्रीतम! आठ-आठ [अष्ट] भवों से मैं आपको प्रिय [वालही] थी और आप मेरे आतमराम थे। मेरे हृदय में बिराजते थे। इस भव में भी मेरे हृदय में आप ही बसे हो... तो फिर... For Private And Personal Use Only

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