Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 7
________________ (५) पूर्व अपनी राजधानी अनुराधपुरमें स्थापित की और वहां निर्ग्रन्थ मुनिके लिये एक 'गिरि' नामक स्थान नियत किया। निग्रन्थ 'कुम्बन्धके लिये राजाने एक मंदिर भी निर्माण कराया जो उक्त मुनिके नामसे प्रख्यात हुआ। एक भिन्न धर्मी प्राचीन इतिहास लेखकके इन बचनोंसे सिद्ध होता है कि ईस्वी सनसे पूर्व पांचवीं शताब्दि अर्थात् भद्रबाहुस्वामीकी दक्षिणयात्राके समयसे भी लगभग दोसौ वर्ष पूर्व सिंहलद्वीपमें जैनधर्मका प्रचार होचुका था । ऐसी अवस्थामें मद्रास प्रान्तके चौल और पाण्ड्य प्रदेशोंमें उस समय जैनधर्मका प्रचलित होना सर्वथा सम्भव प्रतीत होता है। विशाखाचार्यके परिभ्रमणसे वहां जैनधर्मको नया उत्तेजन मिला होगा। तामिल देशके मदुरा और रामनद जिलोंसे अत्यन्त प्राचीन लेख मिले हैं जो अशोकके समयकी ब्राह्मी लिपिमें हैं और इसलिये वे ईस्वीसे पूर्व तीसरी शताब्दिके सिद्ध होते हैं । ये लेख अभीतक पूर्ण रूपसे पढ़े नहीं गये पर जैनियों के श्वंस मंदिरोंके समीप पाये जानेसे प्रतीत होता है कि सम्भवतः वे जैनधर्मसे संबंध रखते हैं। , तामिल देशका साहित्य बहुत प्राचीन है । इस साहित्यके मंगममाहित्य और प्राचीनतम ग्रन्थ 'संगम्काल ' (संघकाल ) के जैनधर्म। बने हुए कहे जाते हैं। संघकालका तात्पर्य यह है कि उक्त समयमें समस्त कवियोंने मिलकर अपना एक संघ बना लिया था और प्रत्येक कवि अपने ग्रंथका प्रचार करनेसे पूर्व उसे इस संघ द्वारा स्वीकार करा लेता था। इस प्रबंधसे केवल उत्कृष्ट साहित्य ही जनताके सन्मुख उपस्थित किया जाता था । इस 'संगम'का अभीतक

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