Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

Previous | Next

Page 314
________________ 288 / महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् महोपाध्यायसीमा [ श्रीपार्श्व राजनाजन्मतः शुद्धो नयी च विनयी जयी / त्वयीह भक्तिभाग् राजा नरवर्मा स्वशर्मणे // 281 // यतिव्रतमुपादित्सुर्दत्त्वा दानं यथोचितम् / / चैत्यवैयावृत्त्यकृत्यान्युञ्चित्याचिन्त्यबोधवान् // 282 // त्यक्त्वा राज्यमथादत्त दीक्षां श्रीजैनसद्गुरोः / प्रसेनजित् तत्तनयः शास्ति स्वस्तिकरः प्रजाम् // 283 // त्रिभिर्विशेषकम् तत्कन्या सद्गुणैर्धन्या सप्रभाऽस्ति प्रभावती। अस्या दम्भात् किन्तु रम्भाऽवतरद् भुवि रूपभाक् // 284 // गता साऽन्येधुरुद्यानजिनगेहे सखीवृता / अभ्यर्च्य प्रतिमा जैनीरशृणोद् गीतमद्भुतम् / 285 / गीयमानं किन्नरीभिः श्रीपाहिद्गुणोदयम् / तापपरभागेन सुभगाऽजनि तन्मयी // 286 // मुक्तालङ्कारवसनाहारां तां वीक्ष्य भूपतिः / स्वयंवरां पार्श्वपार्श्वे मुमुक्षुर्यावताऽभवत् // 287 // ज्ञात्वा तद्वृत्तमज्ञत्वात् यवनः पवनोद्धतः / अरुणद् बलमादाय कुशस्थलपुरं छलात् / 288 / मां स प्रैषीद् भवद्ज्ञप्त्यै साम्प्रतं साम्प्रतं विभोः / ___ कार्य पूर्वप्रेमधुर्य नाऽवधायं तदन्यथा // 289 // आकर्ण्य कर्णसावर्ण्य दधानो वीर्यधैर्यवान् / __ अश्वसेनः स्वसेनां द्राक प्रगुणीकृतवान् कृती // 290 // तन्मत्वा प्रावदत् पार्श्वकुमारः स्फारसारवान् / तात मा मादिश दिशं तां जित्वा करवै सुखम् // 291 // तदादिक्षत् सर्वदिक्षु जित्वरं त्वरया प्रभुम् / चचालाऽनेकभूपालैः साकं देवोऽपि सोत्सवम् // 292 // गजैजैस्तुरङ्गाणां प्रयाणे रेणुरुत्थितः। दिशोऽन्धकारयश्चक्रे श्यामलानरिसैनिकान् / 293 / प्रससार प्रतापार्कतेजस्तदैजयन् रिपून् / कवलीकृत्य तद्वीय दिशोऽपि धवलीकृताः / 294 / स्थित्वा कुशस्थलोद्याने पटावासेषु भूरिषु / तमुद्दिश्य मुमोच द्राक् दूतं सन्देशपेशलम् // 295 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376