Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
________________ 334 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [ श्रीवर्धमान राश्यानुशयमाधाय दीक्षा राज्ञस्तदार्थिता / स्मृतौ मे सन्निधिं कुर्या इत्युक्त्या साऽग्रहीद् व्रतम् // 504 // मृत्वाऽनशनयोगेन सौधर्म सा सुरोऽजनि / प्रतिमां तां देवदत्ता कुब्जादासी सदार्चयत् // 505 // अन्यदा नृपबोधार्थ देवस्तापसरूपभाक् / स्वादुपुष्पफलाहारैर्नृपं निन्ये वनान्तरम् // 506 // क्रोधान्धरस्त्रमुद्यम्य धावद्भिस्तज्जिघांसया / ताडयमानो न नाशाय जैनानां शरणं ययौ // 507 // ततः शुद्धान् देवगुरुधर्मानाराधयन्नृपः / साक्षाद्भूय सुरः स्वगं जगामोद्दामधामभाक् / 508 गान्धारः श्रावको यात्रां कुर्व स्तत्राययौ रुजा / ___ पीडितश्चोपचरितः कुब्जया देवदत्तया // 509 // प्रियमाणेन गुटिकास्तस्यै तेन समर्पिताः / तत्प्रभावाऽभिधापूर्व तद्भुक्त्या सा सुरूपभाक् // 510 // सुवर्णगुलिकेत्यस्याः प्रशस्या ख्यातिरप्यभूत् / चिन्तितश्चण्डप्रद्योतः पतिर्भस्त्विति चैतया // 511 // प्रभावाद् गुटिकायास्तु तद्रूपे देववणिते / / __ आरुह्याऽनिलवेगेभं सोऽप्यागात् तज्जिघृक्षया // 512 // तयोक्तमेतत्प्रतिमाप्रतिबिम्बमिहानय / तदत्र मुक्त्वा तत्रैमि गृहीत्वा प्रतिमामिमाम् // 513 // प्रत्यागत्य स चावन्त्यां श्रीखण्डाखण्डदारुणा / देवाधिदेवप्रतिमां नव्यां भव्यामकारयत् // 514 // प्रत्यतिष्ठिपदेनां च कपिलः केवली स्वयम् / प्रद्योतस्तामुपादाय ययौ वीतभयं पुरम् // 515 // पुरातनप्रतिमायाः स्थाने तां न्यस्य सत्वरम् / __दास्या सह प्राक्प्रतिमां लात्वाऽवन्त्यां स चागमत् // 516 // वणिजा विदिशा पुर्या भायलेनाऽर्चनाय सा / प्रतिमा स्वगृहे निन्ये राज्ञा च कुब्जयाऽर्पिता // 517 // तत्राऽन्यदा शम्बलाख्यः सुरः कम्बलसंयुतः / दृष्टः पृष्टो भायलेन जगौ नागकुमारताम् // 518 //
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