Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 295 धनमित्रकथा ज्ञाने व्रते च रोहिणीकथा / स्याद् वसन्तकथा जीवाऽभयदाने प्रसिद्धिभाक् // 386 / / अन्नदाने सुन्दरस्य चरितं तत्कथान्तरे / चान्द्रीकथा भानुकथा मयूरग्राहकस्य च // 387 // वानरस्य कथाऽत्रैव ततः कन्याकथाऽपरा / शीले मदनरेखायाश्चरितं दुरितं हरत् // 38 // आतङ्कसहने वृत्तं सनत्कुमारचक्रिणः / व्रतभङ्गे महापद्मकथाऽत्रान्तःकथा पुनः // 389 // पुण्डरीककण्डरीककथा षष्ठाङ्गसङ्गता / प्रोक्ता भगवता सर्वा राज्ञा चित्ते विनिश्चिता // 390 // अश्वसेननृणो नत्वा हस्तिसेनाह्वयं सुतम् / राज्ये निवेश्य वैराग्याद् व्रतमादत्त सत्तपाः // 391 // वामादेवी प्रभावत्या समं प्रव्रज्य सद्गतिम् / प्राप्ता प्राप्स्यति मोक्षं च विदेहे भवसम्भवात् // 392 // स्वरसेनाश्वसेनोऽपि राजर्षिस्तीव्रयोगतः / लुप्तकर्माऽनन्तशर्मा धर्मादासीत् शिवं गमी // 393 // प्रभोगणधरा आसन् आर्यदत्तार्यघौषकौ / वशिष्ठोऽथ ब्रह्मनामा सोमः श्रीधरसंज्ञितः // 394 // वारिषेणो भद्रयशा जयो विजय इत्यमी / दशाऽपि सदशा गुण्यपुण्यनैपुण्यशालिनः // 395 // इति श्रीलघुत्रिषष्टीये भगवत्पार्श्वचरिते केवलवर्णनम् // श्रीः आर्यदत्तो गणधरो जिने भक्तेः फलं पुरः / सुरासुरनरेन्द्राणां सदस्येवमुपादिशत् // 396 // आज्ञाप्रधानं यद् ज्ञानं श्रद्धा सम्यक्त्वमुच्यते / वैयावृत्यं च विनय इत्याद्याः भक्तिपर्ययाः // 397 // नमस्कारं पुरस्कृत्य क्षमाश्रमणपूर्वकः / - आवश्यकादिप्रारम्भस्तद्भक्तिः प्रथमा व्रतात् // 398 // भक्त्या स्यात् तीर्थकृद् बन्धो भङ्गो नैकाशनादिके / __गुर्वभ्युत्थानजाकारात् पुनमहत्तरादिकात् // 399 // भैषज्यादिकृते वर्षास्वपि साधुर्विहारकृत / ज्ञानाथ दर्शनार्थं च क्रोशविंशतिकावधिः // 400 // गोवृत्त्यै साधुसङ्गे सुभद्रा शीलशालिनी / वीरार्थमाधाकर्माऽपि सृजती रेवती यथा // 401 //
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