Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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________________ 306 ] - महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [ श्रीवर्धमान आदर्श इव तच्चित्ते स्वापे स्वप्नाश्चतुर्दश | अवतेरुमेरुभित्तावृद्धस्था वासवा इव // 59 / / सौधर्मेऽसौ धर्मरुचिर्ददर्शाऽवधिना हरिः / अर्हतोऽस्पष्टमाकारं गर्भस्थस्य ननाम सः / 60 / शक्रस्स्त वेन वन्दित्वाऽभ्युत्थाय द्रव्यतो हरिः / ___ भावतस्तद्गुणध्यानात् पराममर्श चेतसा // 61 // उच्चैर्गोत्रभुवो देवाः सेवार्दा घुसदां सदा / लोकाचर्यवशादेष व्यत्ययोऽजनि साम्प्रतम् / / 62 / / तज्जीतमेतदिन्द्राणां पारम्पर्यादुपागतम् / गर्भापहरणं कुर्या चातुर्याद् देवमोचनात् // 63 // गर्भसंहरणं शैवमतेऽपि सम्मतं यतः / संकर्षण इति ख्यातिर्जाता रामस्य विश्रुता / 64 / आहूय देवं पत्तीनामग्रिमं नैगमेषिणम् / सम्प्रेष्य कारयामास गर्भसंहरणक्रियाम् // 65 // पुरे क्षत्रियकुण्डाख्ये सिद्धार्थनृपतेः स्त्रियाः / त्रिशलायाश्चारुकुक्षौ न्यधाद् देवो जिनेश्वरम् // 66 // तया स्वप्नाहृता दृष्टा हृष्टाऽथ त्रिशला परम् / गजो वृषो हरिः साभिषेका श्रीः स्रक शशी रविः // 67 // ध्वजः पूर्णघटः पनसरश्च सरितां पतिः : विमानं रत्ननिचयः प्रास्तधूमो धनञ्जयः // 68 // स्वप्नानिमान सा ददर्श सिद्धार्थोऽप्यवगम्य तान् / द्विजन्मोक्तफलान् मत्वा जहषुः सकलाः प्रजाः // 69 // रत्नस्वर्णरूप्यवासोवृष्टयस्तुष्टये नृणाम् / विदधुर्मधुरा देवाः सिद्धार्थपार्थिवौकसि // 70 // धनधान्यादिभिवृद्धं जज्ञे ज्ञातकुलं तदा / प्रभौ गर्भस्थिते नाम वर्द्धमानेति निश्चितम् // 71 // मम स्फुरणतो मातुर्दुःखं माऽभूदिति प्रभुः / / पस्पन्दे न ततोऽमँस्त स्तोकं शोकं तदाम्बिका // 72 // अवधिज्ञानतो मत्वा ज्ञानत्रयमयो जिनः / पादाङ्गुष्ठस्पष्टचारात् प्रीणयामास मातरम् // 73 // पित्रोद्युगमने धार्य व्रतमभ्यग्रहीदिति / निश्चिकाय स्फुरत्कायः सन्निकायः श्रियामयम् / / 74 // मृगेङ्गसारेऽर्कविदोः प्रभादौ द्युसदां गुरोः / कर्कोदये विधौ कन्यां तुलायामरुणात्मजे // 75 //

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