Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 336
________________ 310 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [श्रीवर्धमान तस्य प्रार्थनया स्वामी तत्रैकां रात्रिमावसत् / स्थेयं वर्षास्विहेत्यूचे प्रस्थितं स पुनः प्रभुः // 119 // नीरागोऽप्युपरोधेन प्रतिश्रुत्याऽन्यतो ययौ / अष्टौ मासान् विहत्याऽथ तत्र वर्षार्थमागमत् // 120 // कुलप्रत्यर्पिते वर्षास्तस्थौ स्वामी नृणौकसि | गावो बहिस्तृणानाप्त्या वर्षारम्भे क्षुधातुराः // 121 // अधावन् खादितुं वेगात् तापसानां तृणौटजान् / निष्कृपास्तापसास्तास्तेऽताडयन् यष्टिभिर्भृशम् // 22 // ताडितास्ताश्चरवादुस्ताः श्रीवीरालङ्कृतोटजम् / स्थितः प्रतिमया स्वामी नाश्नतीस्ता न्यषेधयत् // 123 // उटजस्वामिना रावा चक्रे कुलपतेः पुरः / प्रभुं सोऽप्यवनीडं रक्षन्ति न वयोऽपि' किम् // 124 // अप्रीतिर्मयि सत्येषा तन्न स्थातुमिहोचितम् / विचिन्त्येति प्रभुः पञ्चाभिग्रहानग्रहीदिमान् // 125 // नाऽप्रातिमद् गृहे वासः, स्थेयं प्रतिमया मया, / न गेहि विनयः कार्यों, मौनं, पाणौ च भोजनम् , // 126 // शुचिराका चतुर्मास्याः अर्द्धमासादनंतरम् / प्रावृष्यथाऽस्थिकग्राम जगाम त्रिजगद्गुरुः // 127 // नाम्नाऽयं वर्द्धमानोऽभूद् ग्रामस्तत्र धनो वणिक / शकटानां पञ्चशत्याऽऽगत्य नद्यन्तरेऽविशत् // 128 // रजसा भारबाहुल्याच्छकटान् वोढुमक्षमाः / अन्ये ततश्चैकवृषभः पारं निन्येऽखिलाँश्च तान् // 129 // त्रुटितस्तद्वशादुक्षा गन्तुमग्रे पटुर्न सः / तज्जीवनार्थ च धनं दत्त्वा ग्राम्ये धनोऽचलत् / 130 / भक्षितं तद्वनं ग्राम्यैर्न कृता स्मारणास्य च ! रौद्रध्यानान्मृत्युमाप्य वृषभो यक्षराडभूत् // 131 // 1. वयः पक्षिणः।

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