Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
________________ 328 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [ श्रीवर्धमान भद्रागृहे गतावेतौ न केनाऽप्युपलक्षितौ / कृशश्यामलदेहत्वात् प्रत्यावृत्तौ चतुःपथे / 409 / धन्यया वीक्षितौ दध्ना स्नेहेन प्रतिलाभितौ / शालिमातुः पारणा वामित्युक्तौ संशयं गतौ // 410 // जिनेन प्राग्भवे माता त्वदीयाऽसाविति ध्रुवम् / प्रोक्तौ संशयमुन्मुच्य प्रपन्नाऽनशनौ ततः // 411 // जनन्या नमने वाचि प्रार्थनायां मनागपि / ___न क्षुब्धौ हृदि सर्वार्थसिद्धि प्रापतुराशु तौ // 412 // इतो राजगृहे लोहखरस्य तनयोऽभवत् / रौहिणेयश्चौरमुख्यो मुषितं तेन तत् पुरम् // 413 // पित्रोक्तोऽयं वत्स वीरवाक्यं धार्य न कुत्रचित् / एकदाऽनेन देवानां लक्षणं धारितं जिनात् // 414 // यतः-अणमिसनयणा मणकज्जसाहणा पुप्फदामअमिलाणा / __चउरंगुलेण भूमि न छिवंति सुरा जिणा विति // 415 // अन्यदाऽस्य ग्रहे मद्यपाने व्याकुलितस्य च / शय्यायां शयने निद्राविरामे प्राहुरङ्गनाः / / 16 / स्वामिन् ! जयजयेत्युच्चैः किं कृतं सुकृतं पुरा। यदस्यां दिवि सम्भूतोऽस्माकं भोक्ता यथासुखम् // 417 // विमृश्य तेन प्रत्यूचे जैनवाक्यावधारणात् / न तल्लक्षणलेशोऽत्र व्यपदेशो हि कश्चन // 418 // स्त्रियः पद्धयां भूस्पृशोऽमूश्चलाचलदृशो भृशम् / / म्लानमाल्यास्ततो नैष स्वर्गों वर्गों न नाकिनाम् // 419 // जिनार्चा तीर्थयात्रा च वात्सल्यं सङ्घचारिणाम् / सदा कृतं च मिथ्यात्वं प्रत्याख्यातं त्रिधा मया // 420 // इत्यादि रौहिणेयोक्त्या मुक्तोऽयं हृद्यचिन्तयत् / अनिच्छया धृतं वाक्यं सुखाय समजायत // 421 // तन्मे पितुर्मषा वाणी तां त्यक्त्वाऽर्हद्वचोऽनुगः / भविष्यामीति निश्चित्य लोकेभ्यस्तद्धनान्यदात् // 422 // प्रवव्राज राजकृतैर्महैस्तेपे महत् तपः / षण्मास्यन्तं चतुर्थादि ययौ सोऽनशनाद् दिवम् / 423 /
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