Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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________________ 300 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम | श्रीपार्श्व देव्याः पूजाकृते याहि रात्रौ सोपस्करः परम् / एकाकी विधिरेष प्राक् प्रतिज्ञातो जयाय ते // 459 // तं तथा प्रस्थितं दृष्ट्वा नरसिंहो गवाक्षतः / ___ उत्तीर्य तत् ततो लात्वा सर्व निशि जगाम सः // 460 // देव्या गृहान्तरे मार्गे नृपादिष्टैनरैर्हतः / ___ नरसिंहस्ततो भूपो निशम्याऽशोचयद् भृशम् // 461 // जामातुर्वनराजस्याऽभिषेकं स विवेकहत् / राज्ये विधाय सुगुरोविजहे व्रतसंग्रही // 462 // राजाऽपि वनराजः स रराज विषयान्वितः / एकदा नन्दनमुनि पप्रच्छ प्राग्भवं निजम् // 463 // मुनिरूचे कुले पुत्रो जिनस्य प्रणतिस्तुतीः / __नित्यं नियमतः चक्रे तत्फलं राज्यलाभकृत // 464 // स्वयं जातिस्मरणभाक् तदुक्त्या जिनधर्मधीः / कारयामास धरणीं जिनचैत्यमयीं जयी // 465 // अन्ते व्रतमुपादाय क्षिप्तदुष्टाष्टकर्मकः / क्रमात् परं पदं लेभे जराजन्मादिवर्जितम् / 466 / इत्यादिश्य गणी साधुमणिर्गुणी शमाग्रणीः / विजहार जनः सर्वः प्रणम्य स्थानमासदत् // 467 / / पार्श्वनामा तीर्थरक्षादक्षः श्यामश्चतुष्करः / ___ यक्षः फणिफणच्छत्रो गजाऽस्यः कूर्मवाहनः // 468 // नकुलं भोगिनं वामकरयोः परयोः पुनः / बीजपूरं च भुजगं दधानः सेवते जिनम् / 469 / सुरी पद्मावती पना पुष्णती छमना विना / स्वर्णवर्णा भक्तिपूर्णा बाहोऽस्याः कुक्कुटोरगः // 470 // पद्मपाशौ दक्षिणाभ्यां तत्पराभ्यां फलाङ्कुशौ / पाणिभ्यां बिभ्रती जज्ञे पार्श्वशासनदेवता // 471 // भगवानपि हेमाजपदन्यासेन सञ्चरन् / धर्मचक्रे पुरो याति चचालाऽथाऽचलातले / 472 / स्पष्टाष्टमङ्गलश्रीकं नष्टाष्टमङ्गलग्रहम् / शिष्टाष्टमगुणं बुद्धेरष्टमं वाच्यमुद्धरेत् // 473 // सगरस्य कथा जैनप्रतिष्ठायां ततः कथा / शिवसुन्दरसोमाख्यजयानां शमिनां पुनः / 474 /

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