Book Title: Laghu Trishashti Shalaka Purush Charitam
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 318
________________ 292 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [ श्रीपार्श्व विशाखाभेऽष्टमतपा लोचं च पञ्चमुष्टिकम् / चक्रे सिद्धान्नमस्कृत्य प्रतिमेक्षणदक्षिणः // 339 // मनःपर्ययवान् देवो विजहार महीतले / राजपुत्रत्रिशत्याहन समात्तव्रतया समम् / / 340 // पारणा परमानेन जज्ञे कोपकटाह्वये / धनेन कारिता तत्र पश्च दिव्यानि जज्ञिरे // 341 // अन्यदा कलिनामाद्रेस्तडागे कुण्डमण्डिते / ___ आसन्नदेशे प्रतिमां गृहीत्वा तस्थिवान् विभुः // 342 // महीधरः करी तत्र पश्यन् जिनमिहाप्तवान् / जातिस्मृति विस्मयतः किं किं न स्याच्छुभं जिनात् // 343 // हेमलारख्योऽहमभवं प्राग्भवे वामनांगवान् / दास्यं कुर्वन् जने हास्ये निर्गतो दुर्गतो गृहात् // 344 // सुप्रतिष्ठेन मित्रेण नीतो गुर्वन्तिकेऽन्यदा / श्रावकव्रतमादत्त योगायोग्यतया गुरोः // 345 // वामनी स्वतनूं निन्दन्निच्छन्नङ्गं महत् स हि / मृत्वार्तध्यानसन्धानात् करी जातो न मत्सरी // 346 // विचार्य कार्यमुचितं पद्मः पूजां पदद्वये / त्रिः प्रदक्षिणयन् पार्श्व सेवे देवं मतङ्गजः // 347 // चम्पाभूपः क्रमाद् वार्ता तां निशम्य निसया / करकण्डुजिनं नत्वा भुक्तदेवेऽन्यदा गते // 348 // नवहस्तां प्रभोमति विधायानर्च नित्यशः / चैत्योन्नत्यात् तीर्थमेतत् कलिकुण्डाख्ययाऽभवत् / / 349 // हस्ती मृत्वाऽभवत् तत्र व्यन्तरस्तीर्थभक्तिमान् / प्रभुरायात् शिवापुर्या वने कौशाम्बनामनि // 350 // प्रतिमायां प्रभुं दृष्ट्वा ग्रीष्मेऽर्कातपसेविनम् / भक्तिकृद्धरणेन्द्रोऽपि फणाच्छत्रं न्यधात् प्रभोः // 351 // तेनाऽऽसीनगरीसंज्ञाऽप्यहिच्छत्रेति विश्रुता / प्राप्तं राजपुरं नाथमीश्वरोऽप्यनमन् नृपः // 352 // जातजातिस्मृतिदृष्ट्वा मन्त्रिपृष्टो नृपो जगौ / प्राग्भवेऽहं द्विजो दत्तः कुष्टी लोकेऽवहीलितः // 353 //

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