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करके ग्रहानयन की अत्यन्त सूक्ष्म विधि बतलायी है। प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् सुधाकर द्विवेदी ने गणकतरंगिणी में जैनाचार्यों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि यन्त्रराज में क्रमोत्क्रमज्यानयन, भुजकोटिज्यानयन, भुजफलानयन, द्विज्याफलानयन एवं क्रान्तिज्या साधन इत्यादि गणितों के द्वारा ग्रहों के स्पष्टीकरण का विधान किया है। इस गणित को सिद्ध करने के लिए १४ यन्त्र यन्त्रराज में महत्त्वपूर्ण दिये गये हैं। इनसे तात्कालिक लग्न एवं तात्कालिक सूर्य आदि का साधन अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ होता है।
जन्मपत्र-निर्माणगणित जन्मपत्र निर्माण करने के लिए सर्व-प्रथम इष्टकाल का साधन करना चाहिए। इष्टकाल साधने के लिए लब्धिचन्द्रविरचित जन्मपत्री पद्धति एवं हर्षकीर्ति विरचित जन्मपत्र पद्धति में अनेक प्रकार दिये गये हैं।
प्रथम नियम यह है कि सूर्योदय से १२ बजे दिन के भीतर का जन्म-समय हो, तो जन्म-समय और सूर्योदय काल का अन्तर कर शेष को २- गुना करने से इष्टकाल होता है अथवा सूर्योदय काल से लेकर जन्म समय तक जितना समय हो, उसी के घट्यादि बनाने पर इष्टकाल हो जाता है।
दूसरा नियम-यदि १२ बजे दिन से सूर्यास्त के अन्दर का जन्म हो, तो जन्म-समय तथा सूर्यास्तकाल का अन्तर कर शेष को २-गुनाकर दिनमान में घटाने से इष्टकाल होता है।
तीसरा नियम-यदि सूर्यास्त से १२ बजे रात्रि के अन्दर का जन्म हो, तो जन्म-समय तथा सूर्यास्तकाल का अन्तर कर शेष को २% गुनाकर दिनमान में जोड़ देने से इष्टकाल होता है।
__ चौथा नियम-यदि १२ बजे रात्रि के बाद और सूर्योदय के अन्दर का जन्म हो तो जन्म-समय तथा सूर्योदय समय का अन्तर कर शेष को २- गुणाकर ६० घटी में घटाने से इष्टकाल होता है। . इस इष्टकाल पर से सर्वक्ष और गतर्फ का साधन भी निम्न प्रकार से करना वाहिए-गत नक्षत्र घटी को ६० घटी में-से घटाकर शेष में सूर्योदयादि इष्टघटी जोड़ने से गतर्फ होता है और उस गत नक्षत्र में जन्म नक्षत्र के घटी, पल जोड़ने से भभोग अर्थात् सर्वः होता है। इस सर्वक्ष में ४ का भाग देने से लब्ध घटी, पल तुल्य एक चरण का मान होता है। इसी मान के हिसाब से गतर्फ में चरण निकालकर राशि एवं नक्षत्र चरण का मान होता है।
लग्न साधन-लग्न साधन करने के जैनाचार्यों ने कई नियम बताये हैं। पहला नियम तो तात्कालिक सूर्य पर-से बताया है। विस्तार के भय से यहाँ पर एक संक्षेप प्रक्रिया का उल्लेख किया जाता है
पंचाग में जो लग्नसारणी लिखी हो, वह यदि सायनसारणी हो तो सायनसूर्य और
१. विशेष जानने के लिए इस पुस्तक का परिशिष्ट भाग देखें।
प्रस्तावना: २५