Book Title: Kevalgyan Prashna Chudamani
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 215
________________ राशि का रहना सन्तान में बाधक है। सप्तम और पंमच स्थान में गुरु का रहना भी अच्छा नहीं होता है। गुण मिलान ___ आगे दिये गये गुणैक्यबोधक चक्र में वर और कन्या के जन्मनक्षत्र के अनुसार गुणों का मिलान करना चाहिए। कुल गुण ३६ होते हैं। यदि १८ गुणों से अधिक गुण मिलें तो सम्बन्ध किया जा सकता है। पर्याप्त गुण मिलने पर भी नाड़ी दोष और भकूट दोष का विचार करना चाहिए। भकूट विचार कन्या की राशि से वर की राशि तक तथा वर की राशि से कन्या की राशि तक गणना कर लेनी चाहिए। यदि गिनने से दोनों की राशियाँ परस्पर में ६ठी और वीं हों तो मृत्यु, ६वीं और ५वीं हो तो सन्तानहानि तथ री और १२वीं हो तो निर्धनता फल होता है। . उदाहरण-वर की राशि जन्मपत्री के हिसाब से मिथुन है और कन्या की तुला है। वर की राशि मिथुन की कन्या की राशि तुला तक गणना की तो ५वीं संख्या हुई और कन्या की तुला राशि से वर की मिथुन राशि तक गणना की तो ६वीं संख्या आयी, अतः परस्पर में राशि संख्या नवम-पंचम होने से भकूट दोष माना जाएगा। नाड़ी विचार आगे दिये गये शतपदचक्र में सभी नक्षत्रों के वश्य, वर्ण, योनि, गण, नाड़ी, राशि आदि अंकित हैं। अतः वर और कन्या के जन्मनक्षत्र के अनुसार नाड़ी देखकर विचार करना चाहिए। दोनों की भिन्न-भिन्न नाड़ी होना आवश्यक है। एक नाड़ी होने से दोष माना जाता है, अतः एक नाड़ी की शादी त्याज्य है। हाँ, वर-कन्या के राशियों में मित्रता हो तो नाड़ी दोष नहीं होता। उदाहरण-वर का कृत्तिका नक्षत्र है और कन्या का आश्लेषा। शतपद चक्र के अनुसार दोनों की अन्त्य नाड़ी है, अतः सदोष है। गुण मिलने का उदाहरण-वर का आर्द्रा नक्षत्र के चतुर्थ चरण का जन्म है और कन्या का अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण का जन्म है। गुणैक्यबोधक चक्र में वर के नक्षत्र ऊपर और कन्या के नक्षत्र नीचे दिये हैं, अतः इस चक्र में १७ गुण मिले। यह संख्या १८ से कम है, अतः सम्बन्ध ठीक नहीं माना जाएगा। ग्रहों के ठीक मिलने पर तथा राशियों के स्वामियों में मित्रता होने पर यह सम्बन्ध किया जा सकता है। . परिशिष्ट-२ : २१३

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