Book Title: Kevalgyan Prashna Chudamani
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 213
________________ द्वादश भाव विचार-बारहवें भाव में शुभ ग्रह हो तो सन्मार्ग में धन व्यय होता है और पापग्रह हों तो कुमार्ग में धन खर्च होता है। बलवान और शुभ ग्रह के द्वादश में रहने से अधिक व्यय होता है। क्रूर ग्रह द्वादश में रहने पर रोग उत्पन्न होते हैं। जन्म लग्नानुसार शुभाशुभ ग्रह बोधक चक्र मेष वृष शुक्र जन्म लग्न | पापफल कारक ग्रह | शुभफल कारक ग्रह | मारक ग्रह एवं अनिष्ट कारक ग्रह शनि, बुध, शुक्र गुरु, सूर्य शुक्र, शनि, बुध गुरु, शुक्र, चन्द्रमा शनि, बुध मंगल, गुरु, शुक्र, चन्द्रमा मिथुन मंगल, गुरु, शनि शुक्र मंगल, गुरु, शनि कर्क शुक्र, बुध मंगल, गुरु शनि, शुक्र बुध सिंह शुक्र; बुध मंगल, गुरु बुध, शुक्र कन्या मंगल, गुरु, चन्द्रमा मंगल, गुरु, चन्द्रमा . तुला गुरु, सूर्य, मंगल शनि, बुध मंगल, गुरु सूर्य वृश्चिक बुध, मंगल, शुक्र गुरु, चन्द्रमा बुध, मंगल, शुक्र शुक्र मंगल, रवि - शनि, शुक्र मकर मंगल, गुरु, चन्द्रमा शुक्र मंगल, गुरु, चन्द्रमा कुम्भ मंगल, गुरु, चन्द्रमा । शुक्र मंगल, गुरु, चन्द्रमा मीन | शनि, शुक्र, रवि, बुध | मंगल, चन्द्रमा शनि, बुध सूर्य और चन्द्रमा स्वयं मारकेश नहीं होते हैं। मारक ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा में मृत्यु नहीं होती; किन्तु पाप ग्रहों का योग होने से अथवा पाप ग्रहों की अन्तर्दशा अथवा प्रत्यन्तर दशा होने पर ही मृत्यु होती है। मारक ग्रह शुभग्रह की अन्तर्दशा में मृत्यु कारक नहीं होता है। जब पांचों ही दशाएं पापग्रह की हों अथवा मारक ग्रह की हों, उस समय मृत्युः निश्चित रूप से होती है। महादशा अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा में तीनों ही पापग्रह या मारक ग्रह की हों तो मृत्यु या तत्तुल्य कष्ट होता है। धनु परिशिष्ट-२ : २११

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