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हुए, जिन्होंने जैन शासन की प्रभावना की। पश्चात् इस वंश में ऐसे बहुत से ब्राह्मण हुए, जिन्होंने श्रावकाचार या मुनि आचार का पालन कर अपना आत्मकल्याण किया था।
आगे इस वंश में लोकपालाचार्य नामक विद्वान् हुए। यह गृहस्थाचार्य थे, फिर भी संसार से विरक्त रहा करते थे। इनका सम्मान चोल राजा करते थे। यह किसी कारण कांची को छोड़कर बन्धु-बान्धव सहित कर्नाटक देश में जाकर रहने लगे। इनका समयनाथ नाम का पुत्र तर्कशास्त्र का पारगामी, कुशाग्रबुद्धि था। समयनाथ का कविराजमल्ल नाम का पुत्र कविशिरोमणि, आशुकवि था। इसका चतुर विद्वान् पुत्र चिन्तामणि नाम का था। चिन्तामणि का अनन्तवीर्य नाम का पुत्र घटवाद में निपुण हुआ। इसका पार्यनाथ नाम का पुत्र संगीतशास्त्र में निपुण हुआ। पार्यनाथ का आदिनाथ नाम का पुत्र आयुर्वेद में प्रवीण हुआ। इसका ब्रह्मदेव नाम का पुत्र धनुर्विद्या में प्रवीण हुआ। इसका देवेन्द्र नाम का पुत्र हुआ। यह देवेन्द्र संहिता शास्त्र में निपुण, कलाओं में प्रवीण, राजमान्य, जिनधर्माराधक, त्रिवर्गलक्ष्मी सम्पन्न और बन्धुवत्सल था। इसकी स्त्री का नाम आदिदेवी था। इस आदिदेवी के पिता का नाम विजयप और माता का नाम श्रीमती था। आदिदेवी के ब्रह्मसूरि, चन्दपार्य और पार्श्वनाथ ये तीन भाई थे। देवेन्द्र और आदिदेवी के आदिनाथ, नेमिचन्द्र और विजयप ये तीन पुत्र हुए। आदिनाथ संहिताशास्त्र में पारगामी था। उसके त्रैलोक्यनाथ और जिनचन्द्र नाम के दो पुत्र हुए।
विजयप ज्योतिषशास्त्र का पारगामी था। इस विजयप का साहित्य, ज्योतिष, वैद्यक आदि विषयों का ज्ञाता समन्तभद्र नाम का पुत्र था। 'केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि' का कर्ता यही समन्तभद्र मुझे प्रतीत होता है। ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान इन्हें परम्परागत भी प्राप्त हुआ होगा। विजयप के ग्रन्थ भी चन्द्रोन्मीलन प्रणाली पर हैं। आयसद्भाव में विजयप का नाम भी आया है। प्रतिष्ठातिलक में समन्तभद्र का उल्लेख निम्न प्रकार हुआ है
धीमान् विजयपाख्यस्तु ज्योतिःशास्त्रादिकोविदः।
समन्तभद्रस्तत्पुत्रः साहित्यरससान्द्रधीः।। 'प्रतिष्ठातिलक' के उक्त कथन का समर्थन 'कल्याणकारक' की प्रशस्ति से भी होता है। इस प्रशस्ति में समन्तभद्र को अष्टांग आयुर्वेद का प्रणेता बतलाया है। मेरा अनुमान है कि यह समन्तभद्र आयुर्वेद के साथ ज्योतिष शास्त्र के भी प्रणेता थे। इन्होंने अपने पिता विजयप से ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया था। 'कल्याणकारक' के रचयिता उग्रादित्य ने कहा है
अष्टाङ्गमप्यखिलमत्र समन्तभद्रैः प्रोक्तं स्वविस्तरवचोविभवैर्विशेषात। संक्षेपतो निगदितं तदिहात्मशक्त्या कल्याणकारकमशेषपदार्थयुक्तम् ॥
सेनगण की पट्टावली में तथा श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में भी समन्तभद्र नाम के दो-तीन विद्वानों का उल्लेख मिलता है। परन्तु विशेष परिचय के बिना यह निर्णय करना बहुत कठिन है कि इस ग्रन्थ के रचयिता समन्तभद्र कौन से हैं? वंश-परम्परा को देखते हुए 'प्रतिष्ठातिलक' के रचयिता नेमिचन्द्र के भाई विजयप के पुत्र समन्तभद्र ही प्रतीत होते हैं। 'शृंगारार्णवचन्द्रिका' में भी विजयवर्णी ने एक समन्तभद्र का महाकवीश्वर के रूप में उल्लेख किया है; पर यह समन्तभद्र प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता नहीं जंचते। यह तो आयुर्वेद और ज्योतिष के ज्ञाता उक्त समन्तभद्र ही हो सकते हैं।
प्रस्तावना : ५७