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व्याघ्रसिंहादयः । तत्र नाम्ना विशेषतो' ज्ञेयाः। दन्तिनो द्विविधाः-ग्रामचरा अरण्यचराश्चेति। 'थ'२ तत्र ग्रामचराः शूकरादयः। 'फ'३ अरण्यचराः हस्त्यादयः। तत्र नाम्ना विशेषतो' ज्ञेयाः। शृङ्गिणो द्विविधाः-ग्रामचरा अरण्यचराश्चेति । 'र' ग्रामचराः महिषछागादयः। 'ष' अरण्यचरा मृगगण्डकादय। इति चतुष्पदो योनिः।
अर्थ-खुरी योनि के ग्रामचर और अरण्यचर ये दो भेद हैं। आ ऐ प्रश्नाक्षर होने पर ग्रामचर अर्थात् घोड़ा, गधा, ऊँट आदि मवेशी की चिन्ता और ख प्रश्नाक्षर होने पर वनचारी पशु रोझ, हरिण, खरगोश आदि की चिन्ता कहनी चाहिए। इन पशुओं में भी नाम के अनुसार विशेष प्रकार के पशुओं की चिन्ता कहनी चाहिए। - नखी योनि के ग्रामचर और अरण्यचर ये दो भेद हैं। 'छ' प्रश्नाक्षर हो तो ग्रामचर अर्थात् कुत्ता, बिल्ली आदि नखी पशुओं की चिन्ता और 'ठ' प्रश्नाक्षर हो तो अरण्यचर-व्याघ्र, चीता, सिंह, भालू आदि जंगली नखी जीवों की चिन्ता कहनी चाहिए। नाम के अनुसार विशेष प्रकार के नखी जीवों की चिन्ता का ज्ञान करना चाहिए।
दन्ती योनि के दो भेद हैं-ग्रामचर और अरण्यचर। 'थ' प्रश्नाक्षर हो तो ग्रामचर-शूकरादि ग्रामीण पालतू दन्ती जीवों की चिन्ता और 'फ' प्रश्नाक्षर हो तो अरण्यचर हाथी आदि जंगली दन्ती पशुओं की चिन्ता कहनी चाहिए। दन्ती पशुओं को नामानुसार विशेष प्रकार से जानना चाहिए। - शृंगी योनि के भी दो भेद हैं-ग्रामचर और अरण्यचर। 'र' प्रश्नाक्षर हो तो भैंस, बकरी आदि ग्रामीण पालतू सींगवाले पशुओं की चिन्ता और 'ष' प्रश्नाक्षर हो तो अरण्यचर-हरिण, कृष्णसार आदि वनचारी सींग वाले पशुओं की चिन्ता समझनी चाहिए। इस प्रकार चतुष्पद-पशु योनि का निरूपण सम्पूर्ण हुआ।
विवेचन-प्रश्नकालीन लग्न बनाकर उसमें यथास्थान ग्रहों को स्थापित कर लेने पर चतुष्पद योनि का विचार करना चाहिए। यदि मेष राशि में सूर्य हो तो व्याघ्र की चिन्ता, मंगल हो तो भेड़ की चिन्ता, बुध हो तो लंगूर की चिन्ता, शुक्र हो तो बैल की चिन्ता, शनि हो तो भैंस की चिन्ता और राहु हो तो रोझ की चिन्ता कहनी चाहिए। वृष राशि में सूर्य हो तो बारहसिंगा की चिन्ता, मंगल हो तो कृष्णमृग की चिन्ता, बुध हो तो बन्दर की चिन्ता, चन्द्रमा हो तो गाय की चिन्ता, शुक्र हो तो पीली गाय की चिन्ता, शनि हो तो भैंस की चिन्ता और राहु हो तो भैंसा की चिन्ता बतलानी चाहिए। मंगल यदि कर्क राशि में हो तो हाथी, मकर राशि में हो तो भैंस, वृष में हो तो सिंह, मिथुन में हो तो कुत्ता, कन्या में हो तो शृगाल, सिंह में हो तो व्याघ्र एवं सिंह राशि में रवि, चन्द्र और मंगल ये तीनों ग्रह हों तो सिंह की चिन्ता कहनी चाहिए। चन्द्रमा तुला राशि में स्थित हो और लग्न स्थान को
१. विशेषः-क. मू.। २. 'थ' इति पाठो नास्ति-क. मू.। ३. 'फ' इति पाठो नास्ति-क. मू.। ४. विशेषः-क. मू.।
१०४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि