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फल असत्य निकलेगा। फलादेश विचार करते समय प्रश्नाक्षर और प्रश्नलग्न इन दोनों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
मूलयोनि के भेद-प्रभेद - अथ मूलयोनिः । स चतुर्विधः२–वृक्षगुल्मलतावल्लिभेदात् । आ ई ऐ औकारेषु यथासंख्यं वेदितव्यम् । पुनश्चतुर्विधः-त्वपत्रपुष्पफलभेदात्। कादिभिस्त्वक् खादिभिः पत्रं गादिभिः पुष्पं घादिभिः फलमिति। पुनश्च भक्ष्यमभक्ष्यमिति द्विविधम् । उत्तराक्षरेषु भक्ष्यमधराक्षरेष्वभक्ष्यम्। उत्तराक्षरेषु सुगन्धमधराक्षरेषु दुर्गन्धं कादिखादिगादिघादिभिर्द्रष्टव्यम्। आलिङ्गितादिषु यथासंख्यं योजनीयम्। तिक्तकटुकाम्ललवणमधुरा इत्युत्तराः। उत्तराक्षरमामधराक्षरं शुष्कम् । उत्तराक्षरं स्वदेशमधराक्षरं परदेशम्, ङ अण न माः शुष्काः तृणकाष्ठादयः चन्दनदेवदूर्वादयश्च। इ ज शस्त्राणि वस्त्राणि च। इति मूलयोनिः।
अर्थ-मूलयोनि के चार भेद हैं-वृक्ष, गुल्म, लता, और वल्ली। यदि प्रश्नश्रेणी के आद्यवर्ण की मात्रा 'आ' हो तो वृक्ष, 'ई' हो तो गुल्म, 'ऐ' हो तो लता और 'औ' हो तो वल्ली समझना चाहिए। पुनः मूलयोनि के चार भेद हैं-वल्कल, पत्ते, फूल और फल। क, च, ट, त आदि प्रश्नवर्गों के होने पर वल्कल; ख, छ, ठ, थ आदि प्रश्नवर्गों के होने पर पत्ते; ग, ज, ड, द आदि प्रश्नवर्गों के होने पर फूल और घ, झ, ढ, ध आदि प्रश्नवर्णों के होने पर फल की चिन्ता कहनी चाहिए। इन चारों भेदों के भी दो-दो भेद हैं-भक्ष्य-भक्षण करने योग्य और अभक्ष्य-अखाद्य। उत्तराक्षर-क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स प्रश्नवर्गों के होने पर भक्ष्य और अधराक्षर-ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ्र र व ष प्रश्नवर्गों के होने पर अभक्ष्य मूलयोनि समझनी चाहिए। भक्ष्याभक्ष्य के अवगत हो जाने पर उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों के होने पर सुगन्धित और अधराक्षर प्रश्न वर्गों के होने पर दुर्गन्धित मूलयोनि जाननी चाहिए। अथवा कादि-क, च, ट, त, प, य, श प्रश्न वर्गों के होनेपर भक्ष्य; खादि-ख, छ, ठ, थ, फ, र, ष प्रश्नवर्गों के होने पर अभक्ष्य, गादि-ग, ज, ड, द, ब, ल, ष प्रश्नवर्गों के होने पर सुगन्धित और घादि-घ, झ, ढ, ध, भ, व, स प्रश्नवर्गों के होने पर दुर्गन्धित मूलयोनि कहनी चाहिए। आलिंगित, अभिधूमित, दग्ध और उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों में क्रमशः भक्ष्य, अभक्ष्य, सुगन्धित और दुर्गन्धित मूलयोनि कहनी चाहिए। तिक्त, कटुक, मधुर, लवण, आम्लक ये उपर्युक्त मूल योनियों के रस होते हैं। उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों के होने पर आर्द्र मूलयोनि, अधराक्षर प्रश्नवर्गों के होने पर शुष्क; उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों के होने पर स्वदेशस्थ, अधराक्षर प्रश्न वर्गों के होने पर परदेशस्थ मूलयोनि समझनी चाहिए। ङ ञ ण
१. तुलना-के. प्र. र. ७२-७५ । के. प्र. सं. पृ. २०-२१। ग. म. पृ. ६-११। ष. पं. भ. प. ८ । आ. ति. ह.
पृ. १५ । ज्ञा. प्र. पृ. १६-२१। प्र. कौ. प. ६। प्र. कु. प. २०-२१। के. हो. पृ. १०८-११३। २. स . चतुर्विधः-क. मू.।। ३. योजनीयम्-पाठो नास्ति-क. मू.।।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ११३