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असंयुक्तादि प्रश्न श्रेणियों में विभाजित कर फल बतलाना चाहिए। प्रश्नकुतूहलादि प्राचीन ग्रन्थों में पिंगलशास्त्र के अनुसार प्रश्नाक्षरों के मगण, यगण, रगण, सगण, तगण, जगण, भगण, नगण, गुरु और लघु ये विभाग कर उत्तर दिये हैं। इनका विचार छन्दशास्त्र के अनुसार ही गुरु, लघु क्रम से किया गया है अर्थात् मगण में तीन गुरु, यगण में आदि लघु और दो गुरु, रगण में मध्य लघु और शेष दो गुरु, सगण में अन्त गुरु और शेष दो लघु, तगण में अन्त लघु और शेष दो गुरु, जगण में मध्य गुरु और शेष दो लघु, भगण में आदि गुरु
और शेष दो लघु और नगण में तीन लघु वर्ण होते हैं। यदि प्रश्नकर्ता उच्चरित वर्गों में प्रारम्भ के तीन वर्ण लघु मात्रावाले हों तो नगण समझना चाहिए। इसी प्रकार उच्चरित वर्णों के क्रम से मगण, यगणादि का विचार करना चाहिए। मगणादि का स्पष्ट ज्ञान करने के लिए चक्र नीचे दिया जाता है
मगणादि' सम्बन्धी प्रश्न-सिद्धान्त-चक्र
| मगण
छ
यगण रगण । ऽ।ऽ
सगण ।ऽ
तगण ऽऽ।
जगण ।।
भगण ।।
नगण ।।
गण । | लघुगुरु
सत्त्व
पृथ्वी जल
तेज
वायु
आकाश तमोगुण
व रजोगुण
,
तत्त्व
स्थिर
चर
चर
चर
__ चरादि स्थिर द्विस्वभाव चर स्थिर
भाव संज्ञा
स्त्री पुरुष पुरुष नपुंसक नपुंसक पुरुष स्त्री पुरुष पु
संज्ञा मूल जीव. धातु जीव ब्रह्म जीव जीव जीव चिन्ता मित्र सेवक शत्रु शत्रु सम सम सेवक मित्र
संज्ञा पीत श्वेत रक्त हरित नील ईषद् रक्त श्वेत रक्त रंग
आग्नेय वायव्य पूर्व पश्चिम
ईशानकोण उत्तर दक्षिण . कोण कोण
कोण यदि पृच्छक के प्रश्न वर्गों में पूर्व चक्रानुसार दो मित्रगण हों तो कार्य सिद्धि और
नैऋत्य
१. “पृथिव्यादीनि पञ्चभूतानि यथासंख्येन ज्ञेयानि। जेन तमो भेन सतो नेन रजोग्रहणम्। त्रयाणां गीतोपनिषद्भिः ___ फलं वाच्यम्।"-प्र. कु., पृ. ६। २. द्रष्टव्यम्-प्र. कृ., पृ. ८ ,
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६३