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अर्थ-पाँचों वर्गों को क्रम से प्रथम, तृतीय वर्ग के साथ मिलाकर फल की योजना करनी चाहिए। प्रथम और तृतीय का द्वितीय और चतुर्थ के साथ योग तथा पृथक् होने के कारण-पंचम वर्ग को दो भागों में विभक्त करने के कारण, पंचम वर्ग का प्रथम और तृतीय वर्ग के साथ योग करना चाहिए। उपर्युक्त संयोगी वर्गों के प्रश्नाक्षर होने पर पूछनेवाला जिन वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रश्न करता है, उन सभी वस्तुओं की प्राप्ति होती है। यदि पूछनेवाला अपने शरीर को स्पर्श कर अर्थात् स्वशरीर को खुजलाते हुए या अन्य प्रकार से स्पर्श करते हुए प्रश्न करे, तो स्वसम्बन्धी चिन्ता और दूसरे के शरीर को छूते हुए प्रश्न करे तो परसम्बन्धी चिन्ता-प्रश्न, कहना चाहिए। यदि प्रथम, द्वितीयादि वर्गों में से प्रश्नाक्षर स्ववर्ग संयुक्त हों तो स्वसम्बन्धी चिन्ता अर्थात् पृच्छक अपने शरीरादि के सम्बन्ध में प्रश्न और भिन्न-भिन्न वर्गों के प्रश्नाक्षर हों तो परसम्बन्धी चिन्ता अर्थात् पृच्छक अपने से भिन्न व्यक्तियों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछना चाहता है। जैसे कण, चण, उणि इत्यादि।
विवेचन-प्रश्न का फल बतलानेवाले गण को प्रश्न का फल निकालने के लिए सबसे. पहले पूर्वोक्त पाँचों वर्गों को एक कागज या स्लेट पर लिख लेना चाहिए। फिर संयुक्त वर्ग बनाने के लिए प्रथम और द्वितीय का अर्थात् प्रथम वर्ग में आये हुए अ क च ट त प य श इन अक्षरों का द्वितीय वर्ग वाले आ ऐ ख छ ठ थ फ र ष इन अक्षरों के साथ योग करना चाहिए। वर्गाक्षरों में पंचम वर्ग के अक्षर पृथक् होने के कारण उ ऊ ङ ञ ण न म अं अः इन अक्षरों का प्रथम और तृतीय वर्ग वाले अक्षरों के साथ योग करना चाहिए। जैसे चण, गण, उण इत्यादि।।
उदाहरण-मोतीलाल नामक कोई व्यक्ति दिन के ११ बजे प्रश्न पूछने आया। फल बतलानेवाले ज्योतिषी को सर्वप्रथम उसकी चर्या, चेष्टा, उठन-बैठन, बात-चीत आदि का सूक्ष्म निरीक्षण करना चाहिए। मनोगत भावों के अवगत करने में उपर्युक्त चेष्टा, चर्यादि से पर्याप्त सहायता मिलती है, क्योंकि मनोविज्ञान-सम्मत अबाधभावानुषङ्ग के क्रम से भविष्यत् में घटित होनेवाली घटनाएँ भी प्रतीकों द्वारा प्रकट हो जाती हैं। चतुर गणक चेहरे की भावभंगी से भी बहुत-सी बातों का ज्ञान कर सकता है। अतः प्रश्नशास्त्र के साथ लक्षण शास्त्र का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिसे लक्षणशास्त्र का अच्छा ज्ञान है, वह बिना गणित क्रिया के फलित ज्योतिष की सूक्ष्म बातों को जान सकता है।
पृच्छक अकेला आए, और आते ही तिनके, घास आदि को तोड़ने लगे तो समझना चाहिए कि उसका कार्य सिद्ध नहीं होगा। यदि वह अपने शरीर को खुजलाते हुए प्रश्न पूछे तो समझना चाहिए कि इसका कार्य चिन्तासहित सिद्ध होगा। अतः मोतीलाल की चर्या, चेष्टा का निरीक्षण करने के बाद मध्याह्न काल का प्रश्न होने के कारण उससे किसी फल का नाम पूछा, तो मोतीलाल ने आम का नाम बताया। अब गणक को विचार करना चाहिए कि 'आम' इस प्रश्न-वाक्य में किस-किस वर्ग के अक्षर संयुक्त हैं? विश्लेषण करने पर मालूम हुआ कि 'आ' प्रथम वर्ग का प्रथमाक्षर है और 'म' पंचम वर्ग का सप्तम अक्षर है। अतः
७० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि