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रोगीप्रश्न-१. रोगी के रोग का विचार प्रश्नकुण्डली' में सप्तम भाव से करना चाहिए। यदि सप्तम भाव में शुभग्रह हो तो जल्द रोग शान्त होता है, और अशुभ ग्रह हो तो विलम्ब से रोग शान्त होता है।
२. रोगी के नाम के अक्षरों को तीन से गुणा कर ४ युक्त करें, जो योगफल आवे, उसमें तीन का भाग दें। एक शेष रहे तो जल्द आरोग्य लाभ, दो शेष में बहुत दिन तक रोग रहता है और शून्य शेष में मृत्यु होती है। प्रश्नकुण्डली में अष्टम स्थान में शनि, राहु, केतु और मंगल हों, तो भी रोगी की मृत्यु होती है।
मुष्टिप्रश्न-प्रश्न के समय मेष लग्न हो तो मुट्ठी में लाल रंग की वस्तु, वृष लग्न हो तो पीले रंग की वस्तु, मिथुन हो तो नीले रंग की वस्त, कर्क हो तो गुलाबी रंग की, सिंह हो तो धूम्र वर्ण की, कन्या में नीले वर्ण की, तुला में पीले वर्ण की, वृश्चिक में लाल वर्ण की, धनु में पीले वर्ण की, मकर और कुम्भ में कृष्ण वर्ण की और मीन में पीले रंग की वस्तु होती है। इस प्रकार लग्नेश के अनुसार वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादन करना चाहिए।
मूकप्रश्न-प्रश्न के समय मेष लग्न हो तो प्रश्नकर्ता के मन में मनुष्यों की चिन्ता, वृष लग्न हो तो चौपायों की, मिथुन हो तो गर्भ की, कर्क हो तो व्यवसाय की, सिंह हो तो अपनी, कन्या हो तो स्त्री की, तुला हो तो धन की, वृश्चिक हो तो रोग की, धनु हो तो शत्रु की, कुम्भ हो तो स्थान और मीन हो तो देव-सम्बन्धी चिन्ता जाननी चाहिए।
मुकदमा सम्बन्धी प्रश्न-१. प्रश्न लग्न-लग्नेश, दशम-दशमेश तथा पूर्णचन्द्र बलवान्, शुभ ग्रहों से युक्त, दृष्ट होकर परस्पर मित्र तथा 'इत्थशाल' आदि योग करते हों और सप्तम-सप्तमेश तथा चतुर्थ-चतुर्थेश हीन बली होकर 'मणऊ' आदि अनिष्ट योग करते हों, तो प्रश्नकर्ता को मुकदमे में यशपूर्वक विजय लाभ होता है।
२. पापग्रह लग्न में हों तो पृच्छक की विजय होती है। यदि लग्न और सप्तम इन दोनों में पापग्रह हों तो पृच्छक की विशेष प्रयत्न करने पर विजय होती है।
. ३. प्रश्न लग्न में सूर्य और अष्टम भाव में चन्द्रमा हो तथा इन दोनों पर शनि मंगल की दृष्टि हो तो पृच्छक की निश्चय हार होती है। .
४. यदि बुध, गुरु, सूर्य और शुक्र क्रमशः प्रश्नकुण्डली में ५।४।१।१० में हों और शनि मंगल लाभ स्थान में हों तो मुकदमे में विजय मिलती है।
५. पृच्छक के प्रश्नाक्षरों को पाँच से गुणा कर गुणनफल में तिथि, वार, नक्षत्र, प्रहर की संख्या जोड़ देनी चाहिए। योगफल में सात का भाग देने पर एक शेष में सम्मानपूर्वक विजय लाभ, दो में पराजय, तीन में कष्ट से विजय, चार शेष में व्ययपूर्वक विजय, पाँच शेष में व्यय सहित पराजय, छह शेष में पराजय और शून्य शेष में प्रयत्नपूर्वक विजय मिलती है।
१. प्रश्नकुण्डली बनाने की विधि इसी ग्रन्थ के प्रारम्भ में दी गयी है। अथवा परिशिष्ट में दी गयी जन्मकुण्डली
की विधि से प्रश्नकुण्डली का निर्माण करना चाहिए।
प्रस्तावना : ५५