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उससे जो अंक संख्या आए, उसे एक स्थान पर पुनः अंकित कर लें। तृतीय बार इसी प्रकार पाशा गिराने पर जो अंक संख्या प्राप्त हो, उसे भी अंकित कर लें। इन तीनों प्रकार की अंकित अंक संख्या में जो सबसे अधिक अंक संख्या हो, उसी का फलाफल देख लें। द्वितीय विधि यह बतायी गयी है कि प्रथम चार बार पाशा डालने पर यदि निष्पन्न अंक राशि विषम हो, तो विषम राशि लग्न और सम हो तो सम राशि लग्न होती है। राशियों के सम, विषम की गणना द्वितीय बार में डाले गये पाशे के प्रथम अंक से करनी चाहिए। इस प्रकार लग्न राशि का निश्चय कर पाशा द्वारा ग्रहों का भी निर्णय कर राशि, नक्षत्र, ग्रहों के बलाबल, दृष्टि आदि विचार से फलाफल ज्ञात करना चाहिए। द्वितीय प्रणाली का आभास सुग्रीव मुनि के नाम से उल्लिखित पाशा केवली के चार श्लोकों में ही मिलता है। 'पाशाकेवली' की प्रणाली को देखने से ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों में प्रश्ननिरूपण की नाना प्रणालियों में इस प्रणाली को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। संस्कृत भाषा में 'गर्भप्रश्न' और 'अक्षरकेवली' प्रश्नग्रन्थ सरल और आशुबोधगम्य प्रथम प्रणाली-सहज पाशाकेवली में निर्मित हुए हैं। इन दोनों ग्रन्थों में यौगिक पाशाप्रणाली और सहज पाशाप्रणाली मिश्रित है।
हिन्दी भाषा में विनोदीलाल और वृन्दावन के 'अरहन्त' पाशाकेवली सहज पाशाप्रणाली पर मिलते हैं। १६वीं, १७वीं और १८वीं सदियों में पाशाकेवली प्रणाली का प्रश्नोत्तर निकालने के लिए अधिक प्रयोग हुआ है। इस प्रकार जैन प्रश्नशास्त्र में उत्तरोत्तर विकास होता रहा
है।
_केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि का जैन प्रश्नशास्त्र में स्थान
जैन प्रश्नशास्त्र की उपर्युक्त प्रणालियों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि 'केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि' में 'चन्द्रोन्मीलन' प्रश्नप्रणाली का वर्णन किया गया है। इस छोटे-से ग्रन्थ में वर्गों का वर्ग विभाजन कर संयुक्त, असंयुक्त, अभिहत, अनभिहत, अभिघातित, अभिधूमित, आलिंगित और दग्ध इन संज्ञाओं द्वारा प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। इस ग्रन्थ की रचनाशैली बड़ी सरल और रोचक है। 'चन्द्रोन्मीलन' में जहाँ विस्तारपूर्वक फल बताया है, वहाँ इस ग्रन्थ में संक्षेप में। आयप्रणाली की कुछ प्राचीन गाथाएँ इस ग्रन्थ में उद्धृत की गयी हैं। गद्य में स्वयं रचयिता ने 'आयप्रश्नप्रणाली' पर प्रकाश डाला है। प्रश्नशास्त्र की दृष्टि से इस ग्रन्थ में सभी आवश्यक बातें आ गयी हैं। कतिपय प्रश्नों के उत्तर विलक्षण ढंग से दिये गये हैं। नष्ट जन्मपत्र बनाने की विधि इसकी सर्वथा नवीन और मौलिक है। यह विषय 'आयप्रश्नप्रणाली' में गर्भित नहीं होता है। चन्द्रोन्मीलन प्रश्नप्रणाली में नष्ट जन्मपत्र निर्माण का विषय आ जाता है, परन्तु चन्द्रोन्मीलन ग्रन्थ की अब तक जितनी प्रतियाँ उपलब्ध हुई हैं, उनमें यह विषय नहीं आया है।
'केवलेज्ञानप्रश्नचूडामणि' को देखने से मालूम होता है कि यह ग्रन्थ चन्द्रोन्मीलन प्रणाली के विस्तार को संक्षेप में समझाने के लिए लिखा गया है। इस शैली के अन्य ग्रन्थों में जिस बात को दस-बीस श्लोकों में कहा गया है, इस ग्रन्थ में उसी बात को एक छोटे-से
प्रस्तावना: ३६