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प्रश्नाक्षरों को लिखकर ग्रन्थोक्त पाँचों वर्गों के अक्षरों से मिलान करें तथा संयुक्त, असंयुक्त आदि संज्ञाओं द्वारा फल का विचार करें।
३. पृच्छक के आने पर किसी अबोध बालक से अक्षरों का स्पर्श कराएँ या वर्णमाला के अक्षरों में से तीन अक्षरों का नाम पूछे पश्चात् उस अबोध शिशु द्वारा बताये गये अक्षरों को प्रश्नाक्षर मानकर प्रश्नों का विचार करें।
४. पृच्छक आते ही जिस वाक्य से बातचीत आरम्भ करे; उसी वाक्य को प्रश्नवाक्य मानकर संयुक्त, असंयुक्त आदि संज्ञाओं द्वारा प्रश्नों का फलाफल ज्ञात करें।
५. प्रातःकाल में पृच्छक के आने पर उससे किसी पुष्प का नाम, मध्याह्नकाल में फल का नाम, अपराह्नकाल में देवता का नाम और सायंकाल में नदी या पहाड़ का नाम पूछकर प्रश्नवाक्य ग्रहण करना चाहिए। इस प्रश्नवाक्य-पर से संयुक्त आदि संज्ञाओं द्वारा प्रश्नों का फलाफल अवगत करना चाहिए। .
६. पृच्छक की चर्या, चेष्टा जैसी हो, उसके अनुसार प्रश्नों का फल बताना चाहिए। ७. प्रश्नलग्न निकालकर उसके आधार से प्रश्नों के फल बतलाने चाहिए।
८. पृच्छक से किसी अंक संख्या को पूछकर उस पर गणित क्रिया द्वारा प्रश्नों का फलाफल अवगत करना चाहिए।
ग्रन्थ का बहिरंग रूप उपयोगी प्रश्न-पृच्छक से किसी फल का नाम पूछना तथा कोई एक अंकसंख्या पूछने के पश्चात् अंकसंख्या को द्विगुणा कर फल और नाम के अक्षरों की संख्या जोड़ देनी चाहिए। जोड़ने के पश्चात् जो योग संख्या आए, उसमें १३ जोड़कर योग में नौ का भाग देना चाहिए। १ शेष में धनवृद्धि, २ में धनक्षय, ३ में आरोग्य, ४ में व्याधि, ५ में स्त्रीलाभ, ६ में बन्धुनाश, ७ में कार्यसिद्धि, ८ में मरण और ६ में राज्यप्राप्ति होती है।
कार्य सिद्धि-असिद्धि का प्रश्न-पृच्छक का मुख जिस दिशा में हो, उस दिशा की अंकसंख्या (पूर्व १, पश्चिम २, उत्तर ३, दक्षिण ४), प्रहरसंख्या (जिस प्रहर में प्रश्न किया गया है उसकी संख्या, तीन-तीन घण्टे का एक प्रहर होता है। प्रातः काल सूर्योदय से तीन घण्टे तक प्रथम प्रहर, आगे तीन-तीन घण्टे पर एक-एक प्रहर की गणना कर लेनी चाहिए।) वारसंख्या (रविवार १, सोमवर २, मंगलवार ३, बुधवार ४, बृहस्पति ५, शुक्र ६, शनि ७) और नक्षत्रसंख्या (अश्विनी १, भरणी २, कृत्तिका ३ इत्यादि गणना) को जोड़कर योगफल में आठ का भाग देना चाहिए। एक अथवा पाँच शेष रहे तो शीघ्र कार्यसिद्धि; छह अथवा चार शेष में तीन दिन में कार्यसिद्धि, तीन अथवा सात शेष में विलम्ब से कार्यसिद्धि एवं एक अथवा आठ शेष में कार्य असिद्धि होती है।
२. पृच्छक से एक से लेकर एक सौ आठ अंक के बीच की एक अंकसंख्या पूछनी चाहिए। इस अंकसंख्या में १२ का भाग देने पर १७६ शेष बचे तो विलम्ब से कार्यसिद्धि, ८।४।१०।५ शेष में कार्यनाश एवं २।६।११० शेष में शीघ्र कार्यसिद्धि होती है।
५० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि