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संस्कृत काव्यशास्त्र में, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में स्पष्ट किया है, रीति धौर गुण के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में तीन मत हैं : आनन्दवर्धन श्रादि श्राचार्य रीति को गुणाश्रित मानते हैं, उद्भट श्रादि गुण को रीति-श्राश्रित मानते है, और वामन इन दोनों को प्राय: अभिन्न ही मानते हैं । वामन का मत है कि विशिष्ट पदरचना का नाम रोति है और यह विशिष्टता गुणात्मक है । इस प्रकार रीति का स्वरूप गुणात्मक है । परन्तु तत्व रूप में दोनों का ऐकात्म्य मानते हुए भी वामन ने व्यवहार रूप में दोनों की पृथक सत्ता मानी है : वैदर्भी, गौडी, पांचाली रीतियां है— श्लेष, प्रसाद, समता, आदि गुण हैं । गुण इन रीतियों के प्राण हैं - इनका वैशिष्ट्य सर्वथा गुणात्मक है, किन्तु फिर भी दोनों को सत्ता अलग ही है ।
भरत ने दश गुण माने हैं :- १. श्लेष, २. प्रसाद, ३. समता, ४. समाधि, २. माधुर्य, ६. श्रोज, ७. सौकुमार्य, ८ श्रयंव्यक्ति, ६. उदारता, १०. कांति । भरत के उपरान्त दरडी और वामन दोनों ने लक्षणों में परिवर्तन-परिशोधन करते हुए इनको ही स्वीकार किया है— दण्डी और चामन ही एक प्रकार से रीति-गुण सम्प्रदाय के अधिनायक हैं । परन्तु श्रागे चलकर ध्वनिकार ने गुणों की संख्या दस से घटाकर तीन करदी - उन्होंने माधुर्य, श्रोज और प्रसाद में ही शेष सात गुणों का अतर्भाव कर दिया । - मम्मट आदि ने भी इन्हीं को स्वीकृति दी और तब से प्रायः ये तीन गुण ही प्रचलित रहे हैं। परन्तु देव ने इस विषय में पूर्व-ध्वनि परम्परा का अनुसरण करते हुए उपर्युक्त दल गुणों (रीतियों) को ग्रहण किया हैचरन् उन्होंने तो अनुप्रास और यमक को भी गुणों (रीतियों) के अन्तर्गत मानते हुए उनकी संख्या बारह तक पहुंचा दी है । यमक और अनुप्रास को रीति (गुण) मानना साधारतः असंगत है क्योंकि गुण काव्य की श्रात्मा का धर्म है, दुमरे शब्दों में काव्य का स्थायी धर्म है, इसके विपरीत यमक और श्रनुप्रास रस के प्रांतरिक तत्व न होने से काव्य के अस्थायी धर्म ही रहेंगे । परन्तु देव की इस स्थापना से एक महत्वपूर्ण संकेत अवश्य मिलना है : वह,
यह कि पण्डितराज जगन्नाथ की भाँति वे गुणों की स्थिति श्रर्थ के साथ-साथ चर्णों में भी मानते हैं । उपर्युक्त दस गुणों के विवेचन में उन्होने भरत और चामन की अपेक्षा प्रायः दण्डी का ही अनुसरण किया । — क्रम भी बहुत कुछ दण्डी से हो मिलता है, लक्षण तो कहीं कहीं काव्यादर्श से अनूदित हो कर दिए गए हैं। श्लेष, प्रमाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, श्रर्थव्यक्ति और थोज के
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