Book Title: Kavyalankar Sutra Vrutti
Author(s): Vamanacharya, Vishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 60
________________ १५४ काव्यलङ्कारसूत्रवृत्ती ५. अर्थ गुण समाधि १५० भङ्ग से यमक का उत्कर्ष क अयोनि अर्थ १५० भङ्ग के तीन भेद ख अन्यच्छाया योनि अर्थ १५१ क श्रृंखला भग अर्थ के व्यक्त, सूक्ष्म दो भेद १५२ ख. परिवर्तक भग सूक्ष्म के भाव्य और वासनीय ग चूर्ण भङ्ग दो भेद १५२ | यमक के विषय में सात सग्रह ६ अर्थ गुण माधुर्य १५३ श्लोक १७४ ७ अर्थ गुण सौकुमार्य | अनुप्रास का लक्षण १७७ ८ अर्थ गुण उदारता १५५ अनुल्वण अनुप्रास की श्रेष्ठता ७९ ९ अर्थ गुण अर्थ व्यक्ति १५६ पाद यमक के समान पादानुप्रास १८० १०. अर्थ गुण कान्ति १५७ यमक के अन्य भेदो के समान काव्यपाक विषयक तीन सग्रह | अनुप्रास के अन्य भेद १८४ श्लोक १५८ काव्य पाक विषयक राजशेखरमत १५९ द्वितीय अध्याय [उपमा विचार १८५-२१०] 'आलङ्कारिक' नामक उपमा का लक्षण १८५ चतुर्थ अधिकरण उपमान और उपमेय का लक्षण १८६ पृष्ठ १६०-२७० उपमा लक्षण में दोनो की प्रथम अध्याय आवश्यकता १८६ [शब्दालङ्कार विचार १६०-१८४ ] उपमा के कल्पिता और लौकिकी दो भेद गुण अलङ्कार का भेद | उनके उदाहरण १८० यमक, अनुप्रास दो शब्दालड्वार १६० पदवृत्ति, वावयार्थ वृत्ति रूप यमक का लक्षण उपमा के दो और भेद यमक के स्थान प्रकारान्तर से उपमा के पूर्णा क. पाद यमक १६३ तथा लुप्ता दो भेद ख. एक पाद के आदि मध्य अन्त | अन्य आचार्यों द्वारा किए हुए यमक उपमा के २७ भेदो की चर्चा १९३ ग. दो पादो के आदि मध्य अन्त | उपमा के कारण यमक १६५ स्तुति, निन्दा और तत्त्वाख्यान घ. एकान्तर पादान्त यमक १६७ / के उदाहरण ङ. समस्त पादान्त यमक १६८ | उपमा के दोष घ. एकाक्षर यमक १६९ | १. हीनत्व उपमा दोष पानी की १८० १६२ १६३

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