Book Title: Kavyalankar Sutra Vrutti
Author(s): Vamanacharya, Vishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 205
________________ सूत्र ४४] पञ्चमाधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः [३२९ आहेति भूतेऽन्यणलन्तभ्रमाद् ब्रुवो लटि । ५, २, ४४। 'बुवः पञ्चानाम्' इत्यादिना 'आह' इति लटिव्युत्पादितः । स भूते प्रयुक्तः । 'इत्याह भगवान् प्रभुः' इति । अन्यस्य भूतकालामिधायिनो एलन्तस्य लिटि भ्रमात् । निपुणाश्चैवं प्रयुञ्जते । 'आह स्म स्मितमधुमधुराक्षरा गिरम्' इति । 'अनुकरोति भगवतो नारायणस्य' इत्यत्रापि मन्ये 'स्म' शब्दः कविना प्रयुक्तो लेखकैस्तु प्रमादान्न लिखित इति ॥ ४४ ॥ [फिर चकार को ] भावृत्ति करनी चाहिए। [जिससे एक चकार से भाव कर्म का अनुकर्षण हो सके और प्रावृत्ति किये हुए दूसरे चकार से अनुक्त का समुच्चय भी हो सके । इस प्रकार गत्यादि सूत्र में उक्त चकार अथवा प्रावृत्ति द्वारा सिद्ध । चकार से अनुक्त का समुच्चय मान कर 'व्यवसित , 'प्रतिपन्नः' इत्यादि सकर्मक घातुमूलक प्रयोगो में कर्ता में भी 'क्त' प्रत्यय हो सकेगा] ॥ ४३ ॥ दू[ 'नून व्यक्तायां वाचिं] धातु का [ वर्तमान काल सूचक ] लट् [लकार] में [ बना हुआ ] 'आह' इस [ वर्तमान काल के बोधक प्रयोग को कुछ लोग कभी-कभी "उवास' आदि ] अन्य गलन्त [प्रयोगो] के [ समान समझकर] भ्रम से भूत काल में [ प्रयुक्त कर देते है । यह उचित नहीं भ्रान्त प्रयोग ] है। 'ब्रुव पञ्चानामादित पाहो बुव.' अष्टा० ३, ४, ८४ इत्यादि [सूत्र] से [ परस्मैपद में बू धातु के लट् लकार के प्रादि से पाच अर्थात् १. तिप्, २. तस्, ३. झि ४. सिप्, ५. थस् के स्थान पर क्रमश. १. गल्, २. अतुस्, ३. उस्, ४ थल्, ५. प्रथुस्, यह पाच आदेश, और '' धातु को 'पाह' आदेश होर] 'आहे यह पद [ वर्तमानता सूचक ] लट् लकार में सिद्ध किया गया है । [कहीं-कहीं ] वह भूतकाल में प्रयुक्त हुआ है । जैसे यह [स्वय ] भगवान् प्रभु ने यह कहा [ इत्याह ] [परन्तु भूतकाल में किया गया 'आह' का प्रयोग] अन्य [प्रयोगो में] भूतकाल के वोधक [ लिट् लकार के ] णलन्त का [अन्य प्रयोगो के समान यहा भी आदेश हुए ‘णल्' प्रादि लिट् लकार में ही हुए है ऐसा समझ कर ] लिट् में [बने हुए प्रयोग का ] भ्रम होने से [ ही 'आह' पद भूतकाल में प्रयुक्त ] होता है। चतुर लोग तो इम [भूतकाल के वोधन के लिए, लट् लकार के रूप के साथ 'स्म' जोड़ कर ] इस प्रकार प्रयुक्त करते है स्मित रूप मधु से मधुर अक्षरो वाली वाणी को ['आह स्म' बोलता भया] वोला । 'भगवान नारायण का अनुकरण करता है' यहा नी [ अनुकरोति

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