Book Title: Kavyalankar Sutra Vrutti
Author(s): Vamanacharya, Vishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ सूत्र ४२] पञ्चमाधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः [३२७ शुभेमिंदादेराकृतिगणत्वात् अड् सिद्ध एव । गुणप्रतिषेधाभावस्तु निपात्यते इति । शोभार्थावित्यत्रैकदेशे कि 'शोभा' आहोस्वित् 'शोभ' इति विशेषावगतिराचार्यपरम्परोपदेशादिति ।। ४१ ॥ अविधौ गुरो. स्त्रिया बहुल विवक्षा । ५, २, ४२ । अविधौ 'अ' विधाने 'गुरोश्च हल' इति स्त्रियां बहुलं विवक्षा। यह ['शोभा' पद का पाठ 'शोभा' शब्द को साधुता को सूचित करता है। शुभ धातु से भिदादि ['पिभिदादिभ्योड्इस सूत्र में पठित भिवादि] [गण] के प्राकृति गण होने से अड् प्रत्यय ] तो सिद्ध ही है। परन्तु अड् प्रत्यय के होने पर डित् होने से गुण का प्रतिषेध प्राप्त होने पर गुण के प्रतिषेध का प्रभाव [अर्थात् गुण की प्राप्ति ] निपातित है। 'शोभायौँ इस पद के एक देश में क्या 'शोभा' [यह पदच्छेद किया जाय ] यह अथवा 'शोभ' यह [पदच्छेद किया जाय ] इस विशेष ['शोभा' या 'शोभ' पद] का निर्णय प्राचार्य परम्परा के उपदेश से समझना चाहिए । अर्थात् धातुपाठ 'शुभ शुम्भ शोभायों' मे शोभायाँ' इस निपातन से ही 'अड्' प्रत्यय परे रहते गुभ धातु मे गुण का निपातन किया है। इस प्रकार 'शोभ गब्द वन जाने के बाद 'अ प्रत्ययात्' ' सूत्र से स्त्रीलिंग मे 'अ' प्रत्यय होकर 'शोभा' शब्द बन सकता है । और या जैसे कि अगले सूत्र मे 'अ' प्रत्यय की 'बहुल विवक्षा' का वर्णन करेगे उसके अनुसार यदि यह 'अ' प्रत्यय न किया जाय तो 'शोम' यह पुल्लिंग प्रयोग भी बन सकता है । जैसे 'वाधा' और 'वाघ, 'ऊहा और 'ऊह, 'व्रीडा' और 'वीड' यह दोनो प्रकार के रूप बनते है । इसी प्रकार 'शोमा' और 'शोभ' यह दोनो प्रकार के रूप बन सकते है। उनमे से यहा 'शोभायौं' इस पाठ में 'शोभा' पदच्छेद किया जाय या 'शोभ', यह वात आचार्य परम्परा से समझनी चाहिए । अर्थात् यहा 'शोभा' पदच्छेद ही करना चाहिए क्योकि 'शोभा' शब्द की सिद्धि करने के लिए ही यह सूत्र लिखा गया है ॥४१॥ ___'' प्रत्यय के विधान में [ 'गुरोश्च हल' इस सूत्र से ] स्त्रीलिङ्ग में गुरुवर्णयुक्त शब्द से 'अ' प्रत्यय की बहुल विवक्षा होती है। ___'' प्रत्यय के विधान में 'गुरोश्च हल.' २ [ इस सूत्र से विहित 'अष्टाध्यायी ३, ३, १०२। २ अष्टाध्यायी ३, ३, १०३।

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220