Book Title: Kavyalankar Sutra Vrutti
Author(s): Vamanacharya, Vishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 188
________________ पञ्चमाषिकरण द्वितीयोऽध्यायः खिद्यते इति च । ५, २, ६ १ 1 खिद्यते इति च प्रयोगो दृश्यते । सोऽपि कर्मकर्तर्येव द्रष्टव्यो, न कतेरि । अदैवादिकत्वान् खिढ़ेः ॥ ६ ॥ सूत्र ६] / [ ३०१ 'क्षि हिसायाम्' 'स्वादिगण' मे आया है वहाँ 'क्षिणोति' रूप वनता है । और तीसरा 'क्षि निवासगत्यो' 'तुदादि गण' मे आया है वहा भी परस्मैपदी धातुओ में ही उसका पाठ है इसलिए सभी जगह 'क्षीयते' मे आत्मनेपद का उपपादन कर्मकर्ता मे प्रयोग मान कर ही हो सकता है । 'व्यय धन क्षिणोति' इस वाक्य मे जब व्यय रूप कर्ता मे कर्तुं त्व की अविवक्षा हो जाती है तव कर्मकर्ता मे प्रयोग होकर 'घन स्वयमेव क्षीयते' इस प्रकार का प्रयोग हो जाता है ॥ ५ ॥ और [ इसी प्रकार ] 'खिद्यते' यह [ प्रयोग ] भी [ कर्मकर्ता का ही प्रयोग समझना चाहिए ] और 'खिद्यते' यह प्रयोग भी पाया जाता है वह भी कर्मकर्ता में [ हो ] समझना चाहिये, कर्ता में नहीं । 'खिद' घातु के [ यहा ] दैवादिक [ दिवादिगणपठित ] न होने से । यहा ग्रन्थकार लिख रहे है कि 'खिद' धातु 'दिवादिगण' की नही है। इसलिए 'खिद्यते' रूप केवल कर्मकर्ता मे वन सकता है । कर्ता मे नही । परन्तु ग्रन्थकार का यह मत चिन्त्य है । क्योकि 'दिवादि गण' मे 'खिद दैन्ये' धातु पाया जाता है और वहाँ कर्ता मे ही 'खिद्यते' रूप भी बनता है । वस्तुत 'खिद' धातु भी धातुपाठ में तीन जगह आया है । 'तुदादिगण' मे 'खिद परिघाते' धातु है उसका 'खिन्दति' रूप बनता है । इसके अतिरिक्त' रुघादि' तथा 'दिवादि' गणो मे 'खिद दैन्ये' इस रूप मे 'खिद' धातु का पाठ हुआ है । 'रुघादिगण' मे उसका 'खिन्ते' रूप बनता है और 'दिवादिगण' में 'खिद्यते ' रूप कर्ता मे वनता हैं । 'तुदादिगण' में 'खिद परिघाते' धातु के प्रकरण मे ही सिद्धान्तकौमुदीकार ने 'अय दैन्ये रुधादौ दिवादी च' यह स्पष्ट रूप से लिख भी दिया है । परन्तु वामन मालूम नही किस आधार पर 'अदैवादिकत्वात् खिदे ' अर्थात् खिद धातु दैवादिक~~दिवादिगण पठित नही है, यह लिख रहे है । 'स्थितस्य गतिश्चिन्त - नीया' के अनुसार यदि इसकी सगति लगानी है तो इस प्रकार लगाई जा सकेगी कि वामन ने किसी विशेष स्थल के प्रयोग विशेष को 'परिघातार्थक तुदादिगणीय 'खिद' धातु से बना हुआ मान कर यह लिखा है कि यहा इस विशेष प्रयोग में प्रयुक्त 'खिद' धातु दिवादिगण पठित दैवादिक धातु नही है । इमलिए उम स्थल मे 'खिद्यते' यह प्रयोग कर्मकर्ता मे समझना चाहिए । दिवादिगण पठित खिद

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